छत्तीसगढ़ के बस्तर में चलाए जा रहे नक्सल विरोधी अभियान में 16 दिसंबर को सुरक्षा बलों ने कथित रूप से 13 वर्षीय सोमारू पोट्टम को नक्सली बताकर मार दिया। इस आदिवासी बच्चे के पिता कुम्मा पोट्टम ने तब से छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में न्याय पाने के लिए याचिका लगाई हुई है। इस याचिका में प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से कहा गया है कि बच्चे को पहले एक पेड़ के तने से बांधा गया था। इसके बाद 4—5 पुलिसकर्मियों ने उससे पूछताछ की और इस दौरान लगातार उसे अपनी संगीनों की नोक से कोंचते रहे।
कुम्मा ने समझदारी दिखाते हुए अपने बच्चे की लाश को परंपरागत तरीके से जलाने के बजाए उसे दफना दिया, जिससे कि प्रमाण नष्ट न हों। उसकी यह समझदारी काम आई। शुक्रवार को हाईकोर्ट ने बस्तर के कमिशनर तथा याचिकाकर्ता की मौजूदगी में शव को पुन: निकाले जाने के निर्देश दिए। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल ले जाने के दौरान कमिशनर साथ ही रहेंगे। बच्चे के पिता की तरफ से कोर्ट में जगदलपुर लीगल एड के वकील उनका पक्ष रख रहे हैं।
शुक्रवार को अदालत में बीजापुर जिले के पुलिस अधीक्षक ने दावा किया कि जिस दिन यह बच्चा मारा गया उस दिन उनके सुरक्षा बलों ने मेटापल तथा गोंगला के जंगलों में एक सफल अभियान के अंतर्गत अज्ञात वर्दीधारी नक्सली को भारी सशस्त्र मुठभेड़ में मार दिया था। चूंकि 16 दिसंबर को इस क्षेत्र में किसी और के मारे जाने का समाचार नहीं है इसलिए अनुमान तो यही है कि पुलिस अधीक्षक नक्सल बता कर मारे गए इसी बच्चे का जिक्र कर रहे थे।
पुलिस की बात का जवाब देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि वह बच्चा वर्दी में नहीं सामान्य ग्रामीण कपड़ों में था। साथ ही प्रत्यक्षदर्शियों के बयान को भी दोहराया गया कि वह बच्चा किसी मुठभेड़ में नहीं उसे सुरक्षाबलों ने बुरी तरह से टॉर्चर करने के बाद निर्दयता पूर्वक मार दिया था।
बच्चे के पिता ने इस मामले की जांच के लिए माननीय कोर्ट की निगरानी में काम करने वाला एक उच्च स्तरीय, स्वतंत्र दल गठित करने की मांग करने के साथ शव का विस्तृत पोस्टमार्टम किए जाने की मांग की है जिससे मृतक की असली उम्र के निर्धारण के साथ मौत के कारणों का पता लग सके।
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