1- बीजेपी अगर किसी तरह बीएमसी में अपना महापौर चुनवा भी लेती, तो उसके पास इतना संख्याबल नहीं था कि वह शिवसेना को कंट्रोल करके पांच साल शांति से कामकाज कर पाती। उसे रोज नई मुसीबत का सामना करना पड़ता।
2- 6 मार्च से राज्य विधानमंडल का बजट सत्र शुरू हो रहा है। ऐसे में बीएमसी में शिवसेना को हराने का मतलब होता कि बीजेपी के लिए बजट पास कराना मुश्किल हो जाता।
3- बजट सत्र में विपक्ष सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कह चुका है। इस स्थिति में अगर शिवसेना विपक्ष के साथ मिल जाती, तो सरकार गिरने का खतरा था।
4- राज्य की 8 जिला परिषदों में अपनी सरकार बनाने के लिए बीजेपी को शिवसेना का समर्थन जरूरत है। बीएमसी में शिवसेना को चित करने का मतलब था, एक मुंबई कब्जाने के लिए इन 8 जिला परिषदों की सत्ता से हाथ धो बैठना।
5- जिन 8 जिला परिषदों में बीजेपी मंत्रियों ने मेहनत करके बीजेपी को सत्ता के करीब पहुंचाया है, उनका भी यह दबाव था कि अकेली बीएमसी की सत्ता के लिए उनकी मेहनत पर पार्टी की सत्ता को दांव पर नहीं लगाया जाना चाहिए।