बुझदिली या बहादुरी! बेजुबान तेंदुए को पीट-पीटकर मार डाला, तमाशा देखता रहा वन विभाग और पुलिस

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तेंदुए

गुरुग्राम के मंडावर गांव में उस वक्त भीड़ की हैवानियत देखने को मिली, जब गांव के लोगों ने एक बेजुबान तेंदुए को पीट-पीट कर बेरहमी के साथ मौत के घाट उतार दिया। लोगों की दरिंदगी यहां भी खत्म नहीं हुई, तेंदुए को मौत की नींद सुलाने के बाद फोटो खिंचवाने का दौर शुरू हुआ। युवाओं में सेल्फी लेने की ऐसी होड़ मची कि किसी ने तेंदुए की पूंछ पकड़कर फोटो ली, तो किसी ने खून से लथपथ उसकी डेड बॉडी को बैकग्रांउड में रखकर फोटो खिंचवाई। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान कुछ पलों के लिए…इंसानियत जैसे मर गई थी।

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पूरे प्रकरण के दौरान भीड़ तो असंवेदनशील हो ही गई थी, वन विभाग और पुलिस अधिकारी भी बेशर्मों की तरह हैवानियत का नंगा नाच देखते रहे। जंगली जानवरों की सुरक्षा का दंभ भरने वाले वन विभाग अधिकारियों को एक बार भी अपना फर्ज याद नहीं आया।

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क्या बेजुबान को मौत की सज़ा देना ही आखिरी विकल्प रह गया था ? क्या ऐसी कोई व्यवस्था नहीं था कि तेंदुए को जिंदा पकड़कर घने जंगलों में छोड़ दिया जाए ताकि वो दोबारा आबादी में ना आने पाए ?  इससे पहले भी कई बार ऐसा हुआ है कि आबादी में जंगली जानवर घुस आए लेकिन उन्हें बिना जान से मारे वहां से भगा दिया गया, फिर यहां ऐसा क्यों नहीं किया गया ? आखिरी और सबसे अहम सवाल एक बेजुबान जानवर को मार डालना भला कैसा इंसाफ है ?

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ये वो सुलगते सवाल हैं जो इंसानियत आज इंसानों से चीख-चीख कर पूछ रही है। हथियारों से लैस..100 लोगों की भीड़ मिलकर एक निहत्थे और बेजुबान जानवर पर वार करे और फिर बहादुरी की बात करे… ये कहां का इंसाफ है।

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खैर जो भी हुआ शायद सही नहीं हुआ.. अब पढ़िए कि आखिर ये सब कैसे और क्यों हुआ….

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दरअसल मंडावर गांव में गुरुवार सुबह तेंदुए ने हमला बोला। उसने वन विभाग के एक कर्मचारी सहित दर्जनभर लोगों को जख्मी कर दिया। गांव वालों ने इसकी सूचना फौरन पुलिस और वन विभाग को दी। कई घंटे बाद जब पुलिस और वन विभाग के अधिकारी वहां नहीं पहुंचे तो ग्रामीणों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। तब ग्रामीणों ने खुद ही मोर्चा संभाल लिया।

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तेंदुआ गांव में अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगा और आखिरकार गांव के सरपंच के घर में जाकर घुस गया। लाठी-डंडों से लैस ग्रामीणों ने तेंदुए को चारों ओर से घेर लिया और उसे मौत के घाट उतार दिया। फिर मृत तेंदुए को घसीटते हुए सोहना-फरीदाबाद रोड पर ले गए और वहां प्रदर्शन किया। तहसीलदार और एसीपी ने लोगों को समझा बुझाकर किसी तरह जाम खुलवाया। ग्रामीणों में गुस्सा था कि प्रशासन ने वक्त रहते फुर्ती नहीं दिखाई, जिससे इतने लोग घायल हो गए।

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पीड़ितों का कहना है कि जब वन विभाग को भी मालूम है कि अरावली में खतरनाक जानवर हैं तो वो गांव वालों की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं कर रहा है। घटना के बाद पुलिस ने घायल योगेश, ललित, प्रवीन, सुन्दर, गुलाब, संदीप, विक्की, रमजान को सोहना के अस्पताल में भर्ती कराया।

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फिलहाल वन्य जीव संरक्षक ने तेंदुए को मारे जाने पर कानूनी कार्रवाई की बात कही है। उन्होंने कहा, “हमने तीन डॉक्टरों की टीम बनाई है जो तेंदुए का पोस्टमार्टम करेगी। इसके अलावा जांच में जो भी दोषी पाए जाएंगे उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।”