दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार (12 अक्टूबर) को अपने फैसले में कहा कि बगैर किसी न्यायोचित कारण के पति के साथ लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाने से मना करना तलाक की वजह के रूप में स्वीकार किया जा सकता। अदालत ने कहा है कि इसे मानसिक क्रूरता माना जा सकता है। अदालत ने ये फैसला एक पति कि तलाक याचिका पर दिया जिसकी पत्नी पिछले साढ़े चाल साल से उससे शारीरिक संबंध नहीं बनाने दे रही थी जबकि उसे कोई शारीरिक समस्या नहीं थी। हाई कोर्ट ने पति को तलाक देने का फैसला सुनाते हुए कहा कि उसकी पत्नी ने ट्रायल कोर्ट में इन आरोपों से इनकार नहीं किया।
जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और जस्टिस प्रतिभा रानी की पीठ ने अपने फैसले में कहा, “मामले पर विचार करते हुए हमें लगा कि याचिकाकर्ता की पत्नी ने एक ही छत के नीचे रहते हुए लंबे समय तक अपने पति को शारीरिक संबंध न बनाने देकर उसके साथ मानसिक क्रूरता दिखाई, जबकि उसके पास इसका कोई न्यायोचित कारण नहीं था, न ही उसे कोई शारीरिक समस्या नहीं थी।” ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता की तलाक की अर्जी इस आधार पर ठुकरा दी थी कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत शारीरिक संबंध न बनाना मानसिक क्रूरता के तहत नहीं आता। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात का संज्ञान लिया कि व्यक्ति की पत्नी ने ट्रायल कोर्ट की कुछ सुनवाइयों में शामिल होने के बाद अदालत आना बंद कर दिया जबकि उसे नोटिस भी भेजी जाती रही।
याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि उसकी शादी 26 नवंबर 2001 को हुई थी और उसके 10 साल और नौ साल को दो बच्चे भी हैं। उसने साल 2013 में अदालत में तलाक की अर्जी डाली थी। व्यक्ति ने कहा कि उसकी पत्नी परिवार के अन्य सदसयों के संग भी क्रूरता दिखाती है और वो घर का कोई कामकाज नहीं करती है। याचिकाकर्ता की पत्नी ने शुरू में ट्राय कोर्ट में सभी आरोपों से इनकार कर दिया था लेकिन शारीरिक संबंध न बनाने पर उसने स्पष्ट बयान नहीं दिया था।