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ऐसी उम्मीद की जा रही है कि केंद्र सरकार की सख्ती के बाद उपद्रवियों के हौसले जरूर पस्त होंगे। साथ ही, अब्दुल गनी भट जैसे अलगाववादी नेताओं के रुख में भी कुछ नरमी के संकेत देखे जा रहे है। अलगाववादी धड़े को पूरी तरह से नजरअंदाज करने का सरकार का फैसला कई तथ्यों को ध्यान में रखकर लिया गया है। सरकार का मूल्यांकन यह है कि हुर्रियत नेताओं को वर्तमान की स्थिति में पूरी तरह से साइडलाइन रखा जा रहा है।
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