नई दिल्ली। न्यायपालिका के साथ टकराव की स्थिति पैदा करने वाला कदम उठाते हुए कर्नाटक ने शुक्रवार(23 सितंबर) को लगभग इस बात से इंकार कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप वह तमिलनाडु को कावेरी नदी का शेष पानी देगा। राज्य विधानसभा के विशेष सत्र में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें कहा गया है कि पानी का उपयोग सिर्फ पेयजल की जरूरतों के लिए होगा और इसे किसी दूसरे मकसद के लिए नहीं दिया जाएगा।
इस एक सदी से पुराने विवाद में अप्रत्याशित कदम उठाते हुए कर्नाटक विधानसभा और विधान परिषद ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया है कि पेयजल की जरूरतों के अलावा किसी दूसरे मकसद के लिए पानी नहीं दिया जाएगा।
सदन में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने अपने जवाब में कहा कि ‘‘यह असंभव परिस्थति पैदा हो गई है जहां अदालती आदेश का पालन संभव नहीं है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि राज्य ‘गंभीर तनाव’ में है और कावेरी से पेयजल की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही संघर्ष कर रहा है।
विधानसभा में पारित प्रस्ताव में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लेख नहीं है, लेकिन कर्नाटक न्यायपालिका के साथ टकराव की स्थिति में आ सकता है। देश की शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि कनार्टक 21 से 27 सितम्बर तक रोजाना 6,000 क्यूसेक पानी तमिलनाडु के लिए छोड़े।
कांग्रेस ने कहा कि कर्नाटक विधानसभा की ओर से पारित किये गए प्रस्ताव में कुछ भी गलत नहीं है। पार्टी प्रवक्ता टॉम वडक्कन ने कहा कि ‘‘विधानसभा में हुई चर्चा लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। मैं नहीं सोचता कि यह संवैधानिक रूप से गलत है। आप वह नहीं दे सकते जो आपके पास नहीं है, अगर ऐसा नहीं है तो समस्या है।’’
सिद्धरमैया ने कहा कि ‘‘किसी को यह नहीं समझना चाहिए कि हम सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दे रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि उनकी सरकार तीनों अंगों- विधायिका, कार्यपालिका और न्यापालिका का समान रूप से पूरा सम्मान करती है और न्यायपालिका के प्रति उसे पूरा सम्मान है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘लोगों ने हमें जनादेश दिया है। हम उसकी अवज्ञा नहीं कर सकते। ऐसा करना कर्तव्य से विमुख होना होगा।’ राज्य में जल संकट का उल्लेख करते हुए सिद्धरमैया ने कहा कि ‘‘हम न्यायपालिका का बहुत सम्मान करते हैं। हमारा इरादा न्यायिक आदेश की अहवेलना करना नहीं है। हम सपने में भी ऐसा करने के बारे में नहीं सोच सकते।’’