रसगुल्ले को अपना बनाने के लिए दोनों राज्य सरकार पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बीच शीतयुद्ध छिड़ चुका है। दोनों राज्यों के बीच इस बात को लेकर तकरार है कि रसगुल्ले हमारा है। रसगुल्ले को अपना बताने के लिए दोनों राज्यों ने अपने इतिहास तक को खंगाल दिया। अब अचानक नींद से जागी ओडिशा सरकार ने जिओग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन (जीआई) का टैग पाने की प्रक्रिया से गुजरने के लिए आठ सदस्यीय समिति गठित कर दी। आठ सदस्यीय कमेटी के चेयरमैन उद्योग निदेशक होंगे। असल में विवाद की शुरुआत 2010 में एक अंग्रेजी पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से हुई, जिसमें रसगुल्ले को राष्ट्रीय मिठाई के रूप में पेश किया।
रसगुल्ले का पेटेंट कराने को लेकर दोनो राज्यों के बीच बीते दो साल से दावेदारी का युद्ध छिड़ा है। पश्चिम बंगाल सरकार ने रसगुल्ले के जीआई स्टेटस के लिए पहले ही नेशनल बायो-डायवर्सिटी अथारिटी कार्यालय में इस बात के लिए आवेदन कर दिया कि रसगुल्ला पश्चिम बंगाल का है। जबकि ओडि़शा अपना बता रहा है। दोनों ही राज्य की सरकारें रसगुल्ले को लेकर इस बात पर भिड़ी हैं कि यह उनके राज्य का मूल उत्पाद है। ओडिशा सरकार ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से जीआई टैग व पेटेंट के लिए आवेदन को कहा था। विभाग इस पर शोध अध्ययन को एक समिति बना दी थी।
इस समिति की रिपोर्ट के अनुसार रसगुल्ला ओडिशा का ही है। इसके लिए पुरी स्थित जगन्नाथ महाप्रभु के मंदिर का इतिहास भी खंगाला गया। संबंधित बही मादड़ा पंजी में जगन्नाथ भगवान के रसगोला का भोग लगाने का जिक्र है। रिपोर्ट के आने के बाद ओडिशा सरकार की मशीनरी ने चुप्पी साध ली। शोधपूर्ण रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि रसगुल्ला के ओडिशा का होने का प्रमाण 15वीं और 16वीं सदी में मिलता है। इस आधार पर यदि राज्य सरकार दावा पेश करती तो शायद अब तक पेटेंट हो चुका होता।