मजार में रहने आए थे, फिर गुफा में चले गए
गुफा के ऊपर ख्वाजा सैय्यद इब्राहिम की मजार है और उसके नीचे प्राचीन काली गुफा है। इसी में वे रहते हैं। नूरल हसन ने बताया कि अंग्रेजों के समय पर इस जंगल में मौगा मालचा गांव हुआ करता था। अंग्रेजों ने इस गांव को उजाड़ दिया था। वे पहले मजार पर रहते थे। मजार पर दो-तीन वर्ष रहने के बाद गुफा में रहने लग गए। नूरल हसन ने फतेहपुरी व देवबंद से पढ़ाई कर रखी है और उन्हें मौलवी की पदवी मिली है। आसपास रहने वाले कुछ लोग उन्हें जानते हैं और खान के नाम से पुकारते हैं। उन्होंने बताया कि जंगल में काफी जंगल जानवर व अजगर जैसे सांप हैं।
पासपोर्ट, वोटर आईडी कार्ड व पैन कार्ड सब इसी पते पर
नूरज हसन ने बताया कि शनिवार को रात में जंतर-मंतर से अपनी गुफा में लौटे थे। कुछ घंटे बाद करीब 200 पुलिसकर्मी उनकी गुफा पर आ गए। ये लोग कहने लगे कि उन्हें थाने चलना पड़ेगा। चाणक्यपुरी थाने ले जाकर करीब छह घंटे तक पूछताछ की थी। नूरल हसन की गुफा का पता डीएच दरगाह ख्वाजा सैय्यद इब्राहिम, परेड ग्राउंड मदर क्रेसेंट रोड है। उन्होंने इस पते पर पासपोर्ट, वोटर आईडी कार्ड व पैन कार्ड बनवा रखा है। गुफा में बिजली का मीटर भी लगा है। वहीं पर खिड़की एक्सटेंशन से निकलने वाले एक साप्ताहिक अखबार का पत्रकार का परिचय पत्र भी था।