नई दिल्ली। राष्ट्रपति भवन के पीछे स्थित जंगल की गुफा में एक मौलवी 35 सालों से रह रहा था। ना वो यह किराएदार हैं और ना भूमिस्वामी। उन्हे यह गुफा पट्टे पर भी नहीं मिली है फिर भी वो रह रहे थे। आप जानकर चौंक जाएंगे कि उनके पासपोर्ट, वोटर आईडी कार्ड व पैन कार्ड पर भी यही पता दर्ज है। सुरक्षा एजेंसियों को शनिवार रात तक यह पता नहीं था कि जंगल की इस छोटी की गुफा में कोई वर्षो से रह रहा है। इस बात का भी खुलासा तब हुआ जब शनिवार रात करीब 10 भी बजे दो संदिग्धों के जंगल में घुसने की सूचना पुलिस को मिली।
सूचना मिलते ही जिला पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंच गए। दिल्ली पुलिस के अलावा राष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात एसपीजी कमांडो को भी मौके पर बुलाया गया। इसके बाद जंगल में संदिग्धों की तलाश आरंभ की गई। इस दौरान चाणक्यपुरी थाने के कुछ पुलिसकर्मी संदिग्धों को ढूंढते-ढूंढते एक मजार के पास पहुंचे। जहां एक बहुत पुरानी छोटी गुफा थी।
इस गुफा में पुलिसकर्मियों को दो व्यक्ति दिखाई दिए। इनकी पहचान 58 वर्षीय गाजी नूरल हसन व 22 वर्षीय मोहम्मद नूर सलीम के रूप में हुई। पुलिस ने दोनों को हिरासत में लिया तो पूरे मामले का खुलासा हुआ।
कब से रह रहे हैं यहां
राष्ट्रपति भवन के पीछे जंगल में स्थित गुफा में रहने वाले व्यक्ति मौलवी गाजी नूरल हसन (68) ने देश के पूर्व राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद को कुरान पढ़ाया था, जबकि उनकी बेटी को अरबी पढ़ाई थी। मौलवी नूरल हसन ने गुफा में रहने की जानकारी के कुछ कागजात तो एसडीएम कार्यालय में जमा करा रखे हैं। हालांकि वे अपने उस दावे के कागजात नहीं दिखा पाए कि गुफा में रहने की सूचना कभी पुलिस को दी थी। आईबी, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल समेत देश की सुरक्षा एजेंसियों ने नूरल हसन से करीब छह घंटे संयुक्त रूप से पूछताछ की थी। पूछताछ के बाद पुलिस टीम ने शनिवार तड़के उन्हें छोड़ दिया।
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