बताया जाता है कि 17वीं शताब्दी में इस मस्जिद को मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के सेनापति ने बनवाया था। बाद में अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने ये जगह मंदिर बनाने के लिए हनुमानगढ़ी मंदिर ट्रस्ट को दे दी। मस्जिद में लगातार नमाज़ भी होती रही है।
हाल ही में जिला प्रशासन ने कानूनी तौर पर हनुमानगढ़ी ट्रस्ट को इस पूरे परिसर और भवन का स्वामी मानते हुए मस्जिद से सटी खंडहर दीवार को गिरा देने या मरम्मत कराने का नोटिस दिया है। उसी आधार पर मस्जिद के सामने जमीन पर बने चबूतरे और दीवार का निर्माण कार्य कराया जा रहा है। दरअसल पिछले दिनों सावन मेले के दौरान मंदिर की छत गिरने के बाद हुए हादसे के चलते प्रशासन ने ऐसी खंडहर इमारतों को नोटिस जारी किया है कि या तो उनकी मरम्मत कराई जाए या फिर उन्हें गिरा दिया जाए। आलमगीरी मस्जिद के लिए भी इसी के तहत नोटिस जारी किया गया है।
लेकिन हाजी महबूब कहते हैं कि यदि महंत ज्ञानदास वास्तव में हिन्दू मुस्लिम भाईचारे की मिसाल पेश करना चाहते हैं तो उन्हें यह ज़मीन और मस्जिद मुसलमानों को सौंप देनी चाहिए। इस बारे में महंत ज्ञानदास से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी। उनके इस प्रयास की तारीफ़ भी हो रही है। लेकिन हाजी महबूब के अलावा ऐसे और भी कई संगठन हैं जो कि महंत ज्ञानदास के इस क़दम का विरोध कर रहे हैं।