ध्यान रहे कि आजम के बयान की जानकारी मिलने पर कोर्ट ने इसे बेहद गंभीरता से लिया था। अगस्त में हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था – “संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति क्या ऐसा बयान दे सकता है? इससे पीड़ित की मनोदशा पर क्या असर पड़ेगा? कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी होती है। ऐसे बयानों से आम आदमी का भरोसा सिस्टम के उठता है।”
नेताओं और संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की अनर्गल बयानबाज़ी पर विस्तार से सुनवाई की ज़रूरत बताते हुए कोर्ट ने इस मसले पर सलाह देने के लिए वरिष्ठ वकील फली नरीमन को अमाइकस क्यूरी नियुक्त किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने आज ये साफ किया कि आज़म के माफीनामे के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई बंद कर दी जाएगी। लेकिन मंत्रियों की बेतुकी बयानबाज़ी पर वो सुनवाई करता रहेगा। इस बारे में विस्तार से सुनवाई कर भविष्य में ऐसे बयानों पर लगाम लगाने के लिए नियम बनाए जाएंगे।
कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बड़े पदों पर बैठे लोगों को कुछ भी बोलने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। ऐसे बयानों की लक्ष्मण रेखा तय करनी ज़रूरी है।