– फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के मुताबिक जल बोर्ड के अफसरों ने दलील दी थी कि एनएसआईजी एक सरकारी कंपनी है, लेकिन जांच के बाद पाया गया कि ये कंपनी एक्ट के मुताबिक एक निजी कंपनी थी।
– फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि एक अन्य कंपनी का टेंडर इसलिए रिजेक्ट कर दिया गया, क्योंकि योजना के लिए इकलौता टेंडर इसी कंपनी का आया था। हालांकि, ये कंपनी तय दरों से लगभग 50 फीसदी के रेट पर काम करने के लिए तैयार थी।
– फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने पाया कि दिल्ली जल बोर्ड के फैसलों की वजह से सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ। जिस कंपनी एसपीएमएल का टेंडर निरस्त किया गया, उसके बदले ऊंचे दामों पर दूसरी कंपनियों को टेंडर देने से जल बोर्ड को करीब 323 करोड का नुकसान हुआ। दस साल के लिए इन कंपनियों से करार किया गया, जिसकी वजह से नुकसान का आंकड़ा 360 करोड़ तक पहुंच गया।
-अगस्त 2015 को पूर्व मुख्यमंत्री और अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर की सिफारिश करते हुए दिल्ली सरकार के मौजूदा मंत्री कपिल मिश्रा ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक चिठ्ठी भी लिखी थी। लेकिन अगस्त के बाद इस रिपोर्ट पर न तो कोई एक्शन उन कंपनियों पर लिया गया, जिन्हें गलत तरीके से टैंकर डिस्ट्रीब्यूशन का कॉन्ट्रेक्ट दिया गया था और न ही आरोपियों पर कोई एफआईआर दर्ज करायी गई।
जब केजरीवाल सरकार की तरफ से घोटाले में FIR दर्ज कराने के लिए फाइल एलजी के पास भेजी गई, तो तुरंत विपक्ष के नेता ने भी एलजी को एक चिठ्ठी लिख दी। इस चिट्ठी में आरोप लगाया गया कि 10 महीने तक सीएम केजरीवाल ने उस फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट को दबाए रखा, जिसमें जल बोर्ड में घोटाला साबित हो चुका था।
मुख्यमंत्री ने रिपोर्ट के आधार पर न तो आरोपियों पर कार्रवाई ही की और न ही उन कंपनियों का कांन्ट्रेक्ट ही रद्द किया, जिन पर गलत तरीक से टैडर हासिल करने का आरोप था।
विजेंद्र गुप्ता ने एलजी से मांग की थी कि सबकुछ जानते हुए भी मौजूदा मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कंपनियों के कॉन्ट्रेक्ट को जारी रखा. इसलिए उनकी भूमिका भी जांच की जानी चाहिए।