नई दिल्ली। आज जहां हमारे देश में भुखमरी और गरीबी के कारण लोग अपने जिगड़ के टुकड़े बच्चे को बेच देते हैं, क्योंकि वह उस बच्चे की क्षुधा को शांत करने में सक्षम नहीं है। फिर भी देश में सबसे गरीब कौन है? यह सवाल प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के लिए यक्ष सवाल बना हुआ है। सरकार न तो सबसे गरीब आदमी को ढ़ूंढ पाई और न ही 100 बेहद गरीब लोगों का पता लगा पाई। नतीजतन पीएमओ को दान में मिले एक लाख रुपये का चेक दानकर्ता को वापस करना पड़ा।
दरअसल, राजस्थान के एक रिटायर्ड अध्यापक दीपचंद ने प्रधानमंत्री दफ्तर को एक लाख रुपए की सहायता राशि भेजकर कहा कि इस राशि को देश के सबसे गरीब 100 लोगों की पहचान कर उनमें से किसी एक को दे दिया जाए। मगर देश का दुर्भाग्य देखिए प्रधानमंत्री दफ्तर ने इस राशि को प्रधानमंत्री कोष में जमा करवा दिया। जब इन्होने कहा कि प्रधानमंत्री कोष में नहीं वो किसी सबसे गरीब को ये पैसा देना चाहते हैं तो पीएमओ ने इनका चेक ये कहते हुए लौटा दिया कि देश में सबसे गरीब की पहचान करने का उनके पास कोई तरीका नहीं है।
ये जवाब प्रधानमंत्री कार्यालय ने राजस्थान के सीकर के दातारामगढ़ के सीनियर सेकेंडरी स्कूल के रिटायर्ड शिक्षक दीपचंद शर्मा को लिखा है। हालांकि, जबकि, 2012 के एक सरकारी आंकड़ों के अनुसार 363 मिलियन लोग भारत में गरीब हैं, यानि देश की जनसंख्या के करीब 29.5 फीसदी, जो दुनिया में सबसे अधिक है। दीपचंद को 18,000 की पेंशन शिक्षक की बरसों की नौकरी की वजह से मिलता है, जबकि 13,000 रु. मीसा पेंशन इमरजेंसी में जेल जाने की वजह से मिलता है। शर्मा के बेटे-बेटी भी दिल्ली में टीचर हैं। इस वजह से ये दान का काम करते रहते हैं।