छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में एक बिन ब्याही मां ने अपने साथ हुए दुष्कर्म की कानूनी लड़ाई तो जीत ली, लेकिन समाज के ठेकेदारों के आगे हार गई। 8 अप्रैल 2015 को देवभोग थाने में सात महीने की एक गर्भवती नाबालिग ने शादी का झांसा देकर शोषण करने की शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया और न्यायालय ने आरोपी को 10 साल की सजा सुना दी। मामले की जानकारी जैसे ही समाज को लगी तो उन्होंने परिवार को समाज से बहिष्कृत कर दिया। आज की वो बिन ब्याही मां गांव से बहिष्कृत होकर अपने बच्चे के साथ श्मशान में रहने को मजबूर है।
इस शर्मनाक घटना की शिकायत मिलने पर जिला प्रशासकों ने बैठक बुलाकर जानकारी ली। इस बैठक में लोगों ने पीड़िता को बहिष्कृत करने की बात से अपना पल्ला झाड़ लिया। लेकिन लोगों ने पीड़िता पर टीका-टिप्पणी का सिलसिला जारी रखा। इससे परेशान होकर बिन ब्याही मां ने गांव छोड़ दिया। पीड़ित परिवार अपने ससुराल रहने गए तो वहां भी ताने बंद नहीं हुए। थक-हारकर अब पीड़ित परिवार झराबहाल के श्मसान के पास जंगल में एक झोपड़ी में रह रहा है। बिन ब्याही मां के पिता का कहना है कि समाज ने पहले गांव छुड़वाया और जब वो अपने ससुराल में रहने गए तो उन्हें वहां से भी तंग कर लोगों ने भगा दिया।
परिवार के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है। उन्हें कोई काम देने को तैयार नहीं है। परिवार के पास खेती लायक जमीन भी नहीं है। फलों के कुछ पेड़ थे , जिन्हें बेचकर परिवार गुजर बसर कर रहा है।प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष से लेकर जिम्मेदार अधिकारियों को मामले की जानकारी है, बावजूद इसके पीड़ित परिवार को कोई मदद नहीं मिल पा रही है।