डॉक्टरों के मुताबिक मोबाइल फोन के ऐंटेना से रेडियो वेव्ज निकती हैं। जो टिशूज ऐंटेना के सबसे नजदीक होते हैं, वे इस एनर्जी को सोख सकते हैं। खास तौर बच्चों के कान के नजदीक मौजूद नाजुक टिशूज को ब्रेन ट्यूमर का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। डॉक्टरों ने इस संबंध में लोगों को सलाह भी दी है। उनके मुताबिक, ‘सिर में रेडिएशन के खतरे को कम करने के लिए लोगों को वायरलेस हेडफोन या हेडसेट का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें कम पावर का ब्लूटूथ लगा हो। फोन पर ज्यादा लंबी बातें न करें। ज्यादा बात करने की बजाय मेसेज भेजें। यह सलाह खास तौर पर बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं के लिए है।’
मोबाइल रेडिएशन की वजह से सिर्फ ब्रेन ट्यूमर की ही आशंका नहीं रहती, बल्कि सेहत से जुड़े कई और खतरे भी हो सकते हैं। मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल से पुरुषों के वीर्य की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है। इस संबंध में सरकार कई विज्ञान संस्थानों से शोध करवा रही है। बता दें कि साल 2011 में एक अंतर-मंत्रालयीन समिति ने कहा था कि मोबाइल टावरों को सघन रिहाइशी इलाकों, स्कूलों, खेल के मैदानों और अस्तपातों के नजदीक नहीं लगाना जाना चाहिए।
समिति ने एक रिसर्च की तरफ भी ध्यान दिलाया था जिसमें यह दावा किया गया था कि बड़े शहरों में तितलियों, मक्खियों, कीडों और गौरैया के गायब होने की वजह मोबाइल टावर से होने वाला रेडिएशन हो सकता है। हालांकि मोबाइल कंपनियों कई सीनियर वैज्ञानिकों का हवाला देकर कहती आई हैं कि मोबाइल टावर के रेडिएशन और सेहत को नुकसान के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है।