नई दिल्ली :क्या मोबाइल से निकलने वाला रेडिएशन सेहत के लिए वाकई हानिकारिक होता है? दुनियाभर में इस सवाल के जवाब की तलाश में अब तक न जाने कितने शोध और अध्ययन हो चुके हैं, पर अंतिम निष्कर्ष पर अभी तक नहीं पहुंचा जा सका है। ऐसे में ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल सायंसेज (AIIMS) ने जब इसे लेकर अभी तक हुए तमाम रिसर्च का विश्लेषण किया तो एक दिलचस्प बात सामने आई। विश्लेषण में पाया गया कि सरकार द्वारा प्रायोजित अध्ययन में मोबाइल रेडिएशन से ब्रेन ट्यूमर होने की आशंका ज्यादा बताई जाती है, जबकि मोबाइल इंडस्ट्री जिस अध्ययन को प्रायोजित करती है, उसमें इस आशंका को कम बताया जाता है।
AIIMS में हुए इस विश्लेषण के मुख्य लेखक और न्यूरॉलजी विभाग के हेड डॉ कामेश्वर प्रसाद ने कहा, ‘हमने पाया कि इंडस्ट्री द्वारा मुहैया कराए गए फंड से होने वाले अध्ययन की गुणवत्ता सही नहीं थी और वे इस खतरे को कम आंकते हैं। सरकारी फंड से होने वाले अध्ययन में साफ बताया गया है कि लंबे समय तक मोबाइल रेडिशन के नजदीक रहने से ब्रेन ट्यूमर का खतरा बढ़ जाता है।’
प्रसाद के मुताबिक, लंबे समय तक मोबाइल का इस्तेमाल करने को लेकर हुए अध्ययन (कम से कम 10 साल या 1,640 घंटे) के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इससे ब्रेन ट्यूमर का रिस्क 1.33 गुना बढ़ जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अगर 100 लोगों को ब्रेन ट्यूमर होता है, तो रेडिएशन की वजह से यह आंकड़ा 133 तक जा सकता है। डॉ प्रसाद और उनकी टीम ने साल 1996 से लेकर 2016 तक दुनियाभर में 48,452 लोगों पर हुए ऐसे 22 अध्ययनों का विश्लेषण किया। इनमें से 10 सरकार द्वारा प्रायोजित थे, 7 को सरकार और मोबाइल निर्माताओं दोनों से फंड मिला था, जबकि कम से कम 3 अध्ययन ऐसे थे जो पूरी तरह मोबाइल इंडस्ट्री द्वारा प्रायोजित थे।
मेडिकल जर्नल न्यूरॉलजिकल सायेंसेज में छपे इस विश्लेषण के नतीजों में बताया गया है कि सरकार द्वारा प्रायोजित अध्ययन का क्वॉलिटी स्कोर 7 या 8 था, जबकि क्वालिटी के मामले में इंडस्ट्री के अध्ययनों का स्कोर 5 या 6 था। कम क्वालिटी स्कोर इस बात की ओर इशारा करता है कि नतीजे पूर्वाग्रह से प्रभावित हो सकते हैं। AIIMS के रिसर्च में बताया गया है कि ज्यादा क्वालिटी स्कोर वाले अध्ययन ब्रेन ट्यूमर के खतरे की ज्यादा आशंका जाहिर करते हैं, जबकि कम क्वालिटी स्कोर वाले अध्ययन इसके बचाव में नजर आते हैं। एक शोधकर्ता ने कहा, ‘हैरत में डालने वाली बात तो यह है कि कुछ अध्ययन यहां तक बताते हैं कि मोबाइल फोन का इस्तेमाल ब्रेन ट्यूमर से बचा सकता है।’
डॉ प्रसाद ने कहा कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल से ब्रेन ट्यूमर की आशंका का मुद्दा काफी विवादित रहा है। उन्होंने कहा, ‘हमारा अध्ययन इसके पीछे के कारणों की पड़ताल करता है। हमारा मकसद उस तकनीक पर सवाल उठाना नहीं है जिसने इस क्षेत्र के क्रांति लाने का काम किया है। हम सिर्फ लोगों को यह बताना चाहते हैं कि कैसे मोबाइल का गैर-जरूरी इस्तेमाल न कर के ब्रेन ट्यूमर जैसे सेहत से जुड़े गंभीर खतरों को कम किया जा सकता है।’
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