चीन ने संकेत दिए हैं कि अगर भारत उसे अरुणाचल का तवांग वाला हिस्सा लौटा दे, तो वह अक्साई चिन पर कब्जा छोड़ सकता है। ऐसा पहली बार नहीं है, जब चीन की ओर से इस तरह की ‘पेशकश’ की गई है। अरुणाचल प्रदेश के प्रसिद्ध बौद्ध स्थल तवांग के बदले चीन पूर्वी क्षेत्र में ‘लेन-देन’ का ऑफर इससे पहले भी कई बार दे चुका है। 2007 में सीमा विवाद सुलझाने के लिए वर्किंग ग्रुप की घोषणा के ठीक बाद चीन ने यही पेशकश की थी, जिससे पूरी बातचीत खटाई में पड़ गई थी।
बता दें कि चीन अरुणाचल को तिब्बत से अलग करने वाली मैकमोहन रेखा को नहीं मानता है। भारत और चीन के बीच पिछले 32 सालों में विभिन्न स्तरों पर दो दर्जन से अधिक बैठकें हुई हैं और इन सभी बैठकों में चीन तवांग को अपना हिस्सा बताता रहा है। आखिर तवांग पर इतना क्यों मरता है चीन, आइए जानने की कोशिश करते हैं….
तवांग भारत चीन सीमा के पूर्वी सेक्टर का सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण इलाका है। तवांग के पश्चिम में भूटान और उत्तर में तिब्बत है। 1962 में चीनी सेना ने तवांग पर कब्जा करने के बाद उसे खाली कर दिया था, क्योंकि वह मैकमोहन रेखा के अंदर पड़ता था। लेकिन इसके बाद से चीन तवांग पर यह कहते हुए अपना हक जताता रहा है कि वह मैकमोहन रेखा को नहीं मानता। चीन तवांग को दक्षिणी तिब्बत कहता है, क्योंकि 15वीं शताब्दी के दलाई लामा का यहां जन्म हुआ था। चीन तवांग पर अधिकार कर तिब्बती बौद्ध केंद्रों पर उसकी पकड़ और मजबूत करना चाहता है। सामरिक नजरिए से तवांग को चीन को देना भी भारत के लिए अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा।