दिल्ली
भारत और चीन के बीच बढ़ती क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता के बावजूद दोनों देशों के ‘‘जटिल’’ संबंधों की व्याख्या महज सैद्वान्तिक तौर पर नहीं की जा सकती। चीनी सरकारी मीडिया ने आज यह टिप्पणी करते हुए भारत के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को ‘मेड इन चाइना 2025’ के साथ जोड़ने का आह्वान किया।
सरकारी ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने एक लेख में आतंकवादी समूह जैश ए मोहम्मद के नेता मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र में प्रतिबंध लगाने की भारत की मुहिम पर चीन के तकनीकी रूप से अडंगा लगाने का हवाला देते हुए कहा, ‘‘भारत-चीन संबंधों के लिहाज से यह साल काफी घटना प्रधान रहा। साल के शुरू में भारतीय मीडिया ने एक सुर में चीनी सरकार की आलोचना करते हुए आतंकवाद के खिलाफ चीन पर दोहरा मानदंड अपनाने का आरोप लगाया।’’ ‘चायना.इंडिया रिलेसन्स आर नाट सिम्पली ब्लैक एण्ड व्हाइट ’ शीषर्क वाले इस लेख में लिखा है, ‘‘जून में भारत के परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में सदस्यता के प्रयासों को चीन सहित उसके सदस्यों के विरोध के कारण झटका लगा था, लेकिन भारत ने सदस्यता रोकने के लिए सिर्फ चीन को जिम्मेदार ठहराया।’’ इसके अनुसार, ‘‘इस कदम को कुछ ने एनएसजी वीटो पर चीन के खिलाफ प्रतिशोध के तौर पर देखा। इस तरह की कई नकारात्मक घटनाओं के कारण कुछ पर्यवेक्षकों ने भारत-चीन संबंधों का आकलन महज सैद्वान्तिक तौर पर किया ।
लेख में 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग की भारत यात्रा और उसके बाद पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन की यात्रा के बाद कई सकारात्मक नतीजों का उल्लेख करते हुए कहा गया, ‘‘महज सैद्वान्तिक तौर पर चीन और भारत के संबंधों को परिभाषित करना आंतरिक एवं अव्यवहारिक होगा । एक बहुआयामी नजरिया द्विपक्षीय रिश्तों के सार का विरोधाभासी नहीं है।’’ इसके अनुसार, ‘‘वास्तव में दो बड़े राष्ट्रों के बीच संबंध हमेशा जटिल रहे हैं और इसके लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की जरूरत है और इस नजरिए से देखने पर भारत-चीन संबंध काफी अलग उभरकर आते हैं।’’ इसमें कहा गया है कि आर्थिक एवं व्यापारिक संबंधों के संदर्भ में चीन एवं भारत के बीच व्यापार की मात्रा चीन और वियतनाम की तुलना में काफी कम है लेकिन वास्तव में चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है ।
लेख के अनुसार , ‘‘वैश्विक स्तर पर दो देशों के बीच नजदीकी सहभागिता द्विपक्षीय रिश्तों को गति देती है जहां दो अर्थव्यवस्थायें एक दूसरे की पूरक हैं लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर भारत और चीन प्रतिस्पद्र्वी हैं ।’’ दोनों देश एक न्यायसंगत, तर्कसंगत नयी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को बढावा देने के लिये समान रूप से प्रेरित हैं और डब्ल्यूटीओ, एशियाई विकास ढांचागत बैंक :एआईआईबी : और ब्रिक्स देशों द्वारा शुरू नये विकास बैंक (एनडीबी) में सहयोग करते हैं तो अपनी रणनीतिक परियोजनाओं के चलते क्षेत्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा का सामना करते हैं ।