बलूच नेता बुगती के शरण वाले आवेदन पर विचार कर रहा गृह मंत्रालय

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फाइल फोटो।

नई दिल्ली। भारत में राजनीतिक शरण की मांग को लेकर बलूच नेता ब्रह्मदाग बुगती की ओर से दिया गया आवेदन गुरुवार(22 सितंबर) को गृह मंत्रालय को मिल गया और वह इस पर गौर कर रहा है।

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि ‘‘हमें राजनीतिक शरण की मांग को लेकर बुगती का आवेदन मिला है और इस पर गौर किया जा रहा है।’’ बुगती ने जिनिवा में भारतीय वाणिज्य दूत में तीन दिन पहले शरण के लिए आवेदन दायर किया था और इसके बाद आवेदन को विदेश मंत्रालय के पास भेज दिया था। विदेश मंत्रालय ने इस आवेदन को गृह मंत्रालय के पास भेजा था।

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भारत में कोई समग्र शरण नीति नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत में कम से कम 6,480 ऐसे लोग हैं जो शरण की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने उनको मान्यता नहीं दी है। स्थिति इतनी जटिल है कि गृह मंत्रालय के अधिकारी 1959 के रिकॉर्ड खंगाल रहे हैं, ताकि प्रक्रिया की जांच की जा सके।

साल 1959 में तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा और उनके समर्थकों को जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने शरण प्रदान की थी। अधिकारी ने कहा कि ‘आखिरकार, यह उच्चतम स्तर का राजनीतिक निर्णय है, लेकिन हमें जरूरी कागजी कार्य के लिए प्रक्रिया का पालन करना होगा।’ किसी भी घरेलू कानून में ‘शरणार्थी’ शब्दावली का उल्लेख नहीं किया गया है।

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भारत ने शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित 1951 के संयुक्त राष्ट्र रिफ्यूजी कंवेशन अथवा 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किया। बुगती बलूच रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष और संस्थापक है। वह बलूच राष्ट्रवादी नवाब अकबर बुगती के पौत्र हैं। नवाब बुगती को पाकिस्तानी सेना ने 2006 में मार दिया था।

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पाकिस्तान की सरकार ने दावा किया कि भारत की मदद से बुगती साल 2010 में अफगानिस्तान होते हुए जिनिवा भाग गए थे। अगर बुगती को शरण प्रदान की गई तो उनको दीर्घकालीन वीजा दिया जा सकता है जिसका हर साल नवीनीकरण करना होगा।

बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन इसी तरह के वीजा के आधार पर 1994 से भारत में रह रही हैं। अधिकारी ने कहा कि दूसरी स्थिति यह बनती है कि बुगती को पंजीकरण प्रमाणपत्र मिले जिसके आधार पर वह दुनिया में कहीं भी सफर कर सकते हैं।