दुनिया के अन्य देशों के साथ के बिना भारत अकेले पाकिस्तान में बदलाव नहीं ला सकता: विशेषज्ञ

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अपर्णा ने कहा कि पाकिस्तान की पोल खुलने का डर या वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ जाने की संभावना के बजाए कोई और बात सेना को उसके मौलिक वैश्विक नजरिए के बारे में पुनर्विचार करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। भारत को दुश्मन बनाए रखना और कश्मीर को सुखिर्यों में रखना पाकिस्तान की मजबूरी है। राष्ट्रवाद को दिखाने के लिए और भारत को दूर रखने के लिए परमाणु हथियारों की धमकी देते रहना पाकिस्तान की मजबूरी है।

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उन्होंने कहा, ‘दुनिया को इस बात के लिए फुसलाते रहना होगा कि वह पाकिस्तान के बर्ताव में बदलाव के बिना, पाकिस्तान की शर्तों पर पाकिस्तान के साथ संबंध बनाए रखे। तोड़ने के लिए ही वादे करने होंगे क्योंकि कोई इसके बारे में कुछ नहीं कर सकता।’ अपर्णा ने कहा कि भारत-पाकिस्तान के बीच अच्छे संबंध नहीं होने में पाकिस्तान की सेना की सोच और उसके वैश्विक नजरिए को अहम मुद्दे के रूप में देखने की अनिच्छा के कारण ऐसे सुझाव सामने आएंगे जो कागज पर तो अच्छे लगते है, लेकिन असल में उनसे केवल निराशा ही पैदा होगी।

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अपर्णा ने ‘कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशल पीस’ के जॉर्ज पेरकोविच और टॉबी डाल्टन की पुस्तक ‘नॉट वार, नाट पीस: मोटिवेटिंग पाकिस्तान टू प्रिवेंट क्रॉस बार्ड टेरेरिज्म’ के विमोचन के अवसर पर आयोजित पैनल चर्चा में अपने विचार रखे।

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इस अवसर पर दक्षिण एशिया के लिए पूर्व सहायक विदेश मंत्री रॉबिन राफेल ने भी अपने विचार रखे। अपर्णा ने कहा कि ‘युद्ध नहीं, शांति नहीं’ के रवैये से पाकिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठान को लाभ होता है। उन्होंने कहा कि क्योंकि युद्ध नहीं है, इसलिए पाकिस्तानी सेना को लड़ने की आवश्यकता नहीं है लेकिन ‘शांति नहीं’ होने से संघर्ष की स्थायी स्थिति के कारण सेना का खास स्थान बरकरार रहता है।

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