दलाई लामा के अरुणाचल दौरे को लेकर चीन के विरोध के बीच, भारत और मलयेशिया ने शनिवार को संयुक्त रूप से इस बात पर जोर दिया कि सभी देशों को समुद्री विवाद निपटाने के लिए संयुक्त राष्ट्र की समुद्री कानून संधि का आदर करना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मलयेशिया के प्रधानमंत्री नजीब अब्दुल रजाक की मुलाकात के बाद जारी संयुक्त बयान में कही गई यह बात काफी अहमियत रखती है। भले ही इसमें साउथ चाइना सी का सीधे तौर पर जिक्र न किया गया हो, पर दोनों देशों ने चीन को साफ संदेश देने की कोशिश की। बता दें कि साउथ चाइना सी में समुद्री सीमा को लेकर चीन का कई मलयेशिया सहित कई देशों से विवाद चल रहा है।
पिछले बार मोदी और रजाक की मुलाकात साल 2015 में हुई थी, उस समय जारी किए गए संयुक्त बयान में समुद्री विवाद का कोई जिक्र नहीं था। शनिवार को हुई मुलाकात के दौरान दोनों देशों के बीच सात समझौतों पर हस्ताक्षर हुए जिनमें वायु सेवा समझौता भी शामिल है। मोदी और नजीब ने अंतरराष्ट्रीय कानून पर आधारित निर्बाध व्यापार करने की स्वतंत्रता का आदर करने की प्रतिबद्धता को दोहराया, जिसका जिक्र 1982 की संयुक्त राष्ट्र की समुद्री कानून संधि में है।
संयुक्त बयान में कहा गया है कि सभी पक्षों को विवादों का निपटारा धमकी या बल का इस्तेमाल किए बिना शांतिपूर्ण तरीके से करना चाहिए ताकि तनाव का माहौल पैदा न हो। यह बात इसलिए अहम है क्योंकि चीन ने संयुक्त राष्ट्र की समुद्री कानून संधि के तहत बनाए गए एक अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल के आदेश के प्रति का सम्मान नहीं किया है। यह आदेश साउथ चाइना सी पर उसके दावे को खारिज करने से संबंधित था।