मुंबई: बीएमसी (मुंबई महानगर पालिका) की सत्ता शिवसेना को ‘उपहार’ में देकर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपनी सरकार बचाने की कीमत चुकाई है। शिवसेना के सामने सरेंडर होने के बाद यह धारणा खुद बीजेपी और महाराष्ट्र के समूचे राजनीतिक जगत में व्यक्त की जा रही है। बीजेपी को सरेंडर कराने में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की रणनीति काफी काम आई। कहा जा रहा है कि बीएमसी चुनाव परिणामों के बाद उद्धव ने बीजेपी नेताओं से संपर्क बिल्कुल तोड़ दिया था। यहां तक कि वे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का फोन तक रिसीव नहीं कर रहे थे। इससे यह संकेत गया कि शिवसेना किसी भी स्तर तक जा सकती है। इतना ही नहीं उद्धव के आदेश पर शिवसेना के मंत्रियों ने सरकार से कामकाज से खुद को अलग करना शुरू कर दिया था।
मंत्रिमंडल की शनिवार को हुई बैठक में जिस तरह से शिवसेना नेताओं ने बगावती तेवर दिखाए और बैठक से बाहर निकल कर जिस तरह से शिवसेना मंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि शिवसेना मंत्रियों के लिए मंत्री पद उद्धव ठाकरे के आदेश से बड़ा नहीं है, उसके बाद बीजेपी सहम गई। मोदी ने दी थी हिदायत पिछले दिनों मुख्यमंत्री जब दिल्ली गए थे, तब वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे। उस बैठक में फडणवीस ने राज्य में शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी के गोलबंद होने की जानकारी मोदी को दी थी। कहा जा रहा है कि उस बैठक में मोदी ने फडणवीस को हिदायत दी थी कि जुलाई में राष्ट्रपति पद का चुनाव है, ऐसे में महाराष्ट्र में किसी भी कीमत पर सरकार पर कोई आंच नहीं आने देना चाहिए। इसके बाद फडणवीस ने दिल्ली से मुंबई लौटकर बीजेपी के शिवसेना विरोधी खेमे को खामोश करा दिया था।
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