आपको बता दें कि गोरखालैंड के लिए चलाए जा रहे आंदोलन का आज 50वां दिन है लेकिन यह खत्म होने के नाम नहीं ले रहा हैं। जिस कारण यहां के बोर्डिंग स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता के माथों पर चिंता कि लकीरों को साफ देखा जा सकता है। यह चिंता किसी और कि नहीं बल्कि अपने बच्चों के भविष्य की है। गोरखालैंड को लेकर चल रहे विवाद और क्षेत्र में अशांति को देखते हुए कई माता-पिता अपने बच्चों की भविष्य को लेकर सिलिगुड़ी, शिमला और दिल्ली जैसे दूर-दराज के क्षेत्रों के स्कूलों में नामांकन कराने कि कोशिश कर रहे हैं।
बता दें कि कुछ दिन पहले ही जीजेएम नेताओं ने कहा था कि स्कूल हमारे लिए दबाव डालने का सबसे मजबूत हथियार है। दार्जिलिंग के एक मिशनरी स्कूल के टीचर का इस बारे में कहना है, ‘अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए नेता और राजनीतिक दल स्कूल और बच्चों को भी अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटेंगे।’
































































