सत्यम शिवम सुंदरम के लिए खुद बनवाया नदी पर पुल
इसी तरह से 1965 में संगम फ़िल्म को ऊटी में शूट करने के बाद जब शुरूआती शाट पसंद नहीं आए तो राजकपूर ने पूरी यूनिट को यूरोप ले जाकर दुबारा शूटिंग की। इतिहास गवाह है कि शूटिंग के लिए यूरोप जाने वाले वाले पहली हिंदी फ़िल्म की यूनिट राजकपूर की ही थी। फ़िल्म मेकिंग में इतनी पैशनेट होने के बाद राजकपूर की फ़िल्मों में तकनीक कभी भी कंटेंट पर हावी नहीं होता था। ।राजकपूर ने अपनी फ़िल्मों में हमेशा कहानी किरदार और कंटेंट को सबसे ज्यादा तरजीह दी। इसके बावजूद अगर कोई सीन या शॉट किसी फ़िल्म की गुणवत्ता को बढ़ाता नजर आता तो राजकपूर ना कभी खर्च की परवाह करते और ना कभी जानो जोखिम की। इसिलिए प्रेम रोग जैसी गंवई शैली की कहानी के लिए भी राजकपूर ने एम्स्टर्डम की बेहद खूबसूरत फ़ूलों की वादी को चुना। सत्यम शिवम सुंदरम के बाढ़ के सीन को फ़िल्माने के लिए राजकपूर ने अपने खर्च पर नदी पर बांध बनवाया। और फ़िर शूटिंग के लिए उसे तुड़वा भी दिया। खुद राजकपूर ने कमर तक पानी में उतर कर शूटिंग की
राजकपूर की असली काबिलियत थी अपने दिल की सुनना। और दिल से निकली बात को सीधे दिल तक पहुंचा देना। बिना किसी तकनीक के या नतीजों की परवाह किए वो जो कुछ भी कहना चाहते थे कह देते थे। उनकी फ़िल्म जागते रहे और श्री चार बीस के वो डायलॉग्स खुद को सभ्य समझने वाले समाज की सोच पर एक करारा तमाचा था। नए नए उस आजादी के माहौल में, हर आम हिन्दुस्तानी के करीब जाकर सोचने और हर आम दर्शक की सोच से सरोकार रखने की अपने इसी हुनर के सहारे, राजकपूर हमेशा ये दिलासा देते रहे कि सपने देखना कोई पाप नहीं , गरीब होना कोई पाप नहीं, और दिल में अगर दिल में मुहब्बत ही मुहब्बत भरी हो तो इस दुनिया में थोड़ा सा चोर होना भी कोई पाप नहीं।
अगले पेज पर पढ़िए- जब राजकपूर ने दर्शकों को हंसा हंसा कर रुलाया था