नई दिल्ली। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कक्षा एक से लेकर स्नातकोत्तर स्तर तक के सभी विद्यार्थियों को अनिवार्य धार्मिक शिक्षा देने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों में संबधित अधिकारियों को निर्देश जारी करने से मना कर दिया। हालांकि अदालत ने कहा कि धार्मिक और नैतिक शिक्षा का अपना महत्व है।
अदालत की लखनउ पीठ में न्यायमूर्ति अमरेश्वर प्रताप साही और न्यायमूर्ति विजय लक्ष्मी की खंडपीठ ने ‘हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस’ (एचएफजे) की जनहित याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए यह बात कही। संगठन ने सभी विद्यार्थियों को अनिवार्य धार्मिक शिक्षा देने के लिए निर्देश देने की मांग की थी।
एचएफजे की ओर से दलील दी गई कि संविधान लागू होने के 66 साल बाद भी स्कूलों के पाठ्यक्रम में धार्मिक और नैतिक शिक्षा को उचित स्थान नहीं मिला है, जिसके चलते युवा पथभ्रष्ट हो जाते हैं और इसी वजह से समाज में बुराइयां बढ़ रहीं हैं।