नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार(18 अक्टूबर) को कहा कि देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सभी शहीद हैं, जिसे समाज द्वारा याद किया जाता है और सरकार से ‘शहीद’ के प्रमाणपत्र जैसी किसी अन्य मान्यता की जरूरत नहीं है।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव की पीठ ने कहा कि ‘‘कोई भी जो अपने प्राण न्यौछावर करता है या देश के लिए किसी कार्रवाई के दौरान मारा जाता है उसे शहीद घोषित होने के लिए किसी प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं होती है।’’
पीठ ने कहा कि ‘‘किसी व्यक्ति द्वारा इस तरह के बलिदान को बड़े रूप से समाज द्वारा याद रखा जाता है। आपने प्राण न्यौछावर किये, इसलिए आप शहीद हैं, किसी से किसी अन्य मान्यता की जरूरत नहीं है।’’
अदालत ने यह मौखिक टिप्पणी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान की जिसमें सेना, नौसेना और वायुसेना की तरह ड्यूटी करते हुए बलिदान देने वाले अर्धसैनिक बल और पुलिस के जवानों के लिए ‘शहीद’ के दर्जे की मांग की गई थी।
पीठ ने कहा कि सरकार के अनुसार, तीनों सेनाओं में ‘शहीद’ शब्द का कहीं प्रयोग नहीं हुआ है और रक्षा मंत्रालय द्वारा ड्यूटी करते हुए मारे गये सदस्यों को शहीद घोषित करने के लिए ऐसा कोई आदेश, अधिसूचना नहीं है।