भारत में दशहरे का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है और दुर्गा पूजा के नो दिन बाद दशमी पर रावण का पुतला जलाया जाता है। लेकिन भारत में ही एक ऐसी जगह भी है जहां दशहरे का जश्न तो मनता है लेकिन रावण का पुतला नहीं फूका जाता। और खास बात यह है कि यहां 75 दिनों तक दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। भारत की ऐसी अनूठी जगह छत्तीसगढ़ में है। यहां के आदिवासी बहुल इलाके बस्तर में जश्न मनाते है जिसे ‘बस्तर दशहरा’ के नाम से जाना जाता है। इस दशहरे की ख्याति इतनी अधिक है कि देश के अलग-अलग हिस्सों के साथ-साथ विदेशों से भी सैलानी इसे देखने आते हैं।
राम-रावण नहीं देवी का पर्व
मान्यता है कि भगवान राम ने अपने वनवास के लगभग दस साल दंडकारण्य में बिताए थे। छत्तीसगढ़ का बस्तर इलाका प्राचीन समय में दंडकारण्य के रूप में जाना जाता था। लेकिन फिर भी यहां का ऐतिहासिक दशहरा राम की लंका विजय के लिए नहीं मनाया जाता है। दशहरे में बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी की विशेष पूजा की जाती है। उनके लिए यहां एक भव्य रथ तैयार किया जाता है, इस रथ में उनका छत्र रखकर नवरात्रि के दौरान भ्रमण के लिए निकाला जाता है।
75 तक मनाया जाता है त्योहार
बस्तर दशहरे की शुरुआत श्रावण (सावन) के महीने में पड़ने वाली हरियाली अमावस्या से होती है। इस दिन रथ बनाने के लिए जंगल से पहली लकड़ी लाई जाती है। इस रस्म को पाट जात्रा कहा जाता है। यह त्योहार दशहरा के बाद तक चलता है और मुरिया दरबार की रस्म के साथ समाप्त होता है। इस रस्म में बस्तर के महाराज दरबार लगाकार जनता की समस्याएं सुनते हैं। यह त्योहार देश का सबसे ज्यादा दिनों तक मनाया जाने वाला त्योहार है।