AIADMK नेता और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता की मौत पर मद्रास हाई कोर्ट ने सवाल उठाए और कहा कि उनकी मौत से संबंधित सच सामने आना चाहिए। हाई कोर्ट के जज वैद्यालिंगम ने इस मामले में एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि जयललिता की मौत पर मीडिया के साथ हमें भी संदेह है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच के लिए शव को बाहर निकालने में क्या दिक्कत है। कोर्ट को ये भी शक है कि जब कुछ दिन पहले डयललिता की तबीयत ठीक बताई जा रही थी, तो अचानक ऐसा क्या हुआ कि उनकी हालत बिगड़ गई और मौत हो गई।
गौरतलब है कि अन्नाद्रमुक के एक कार्यकर्ता पीए जोसेफ ने हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। उसमें कहा गया था कि जयललिता की बीमारी के दौरान कभी किसी को उनके पास जाने का मौका नहीं मिला। उनकी मृत्यु की वजहों की भी जानकारी नहीं दी गई। केवल चुनिंदा लोग ही उनके करीब थे। मृत्यु के बाद भी उनकी बीमारी और मौत की वजहों की जानकारी बाहर नहीं निकल पाई। ऐसे में अब जयललिता से संबंधित सारी बातें सार्वजनिक की जानी चाहिए।
याचिका में मांग की गई थी कि जयललिता की ‘रहस्यमयी’ मौत की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के तीन रिटायर्ड जजों का एक आयोग बनाया जाए। इस मामले में हाई कोर्ट ने केंद्र और प्रधानमंत्री कार्यालय को नोटिस भेजा है। इसके साथ ही यह नोटिस तमिलनाडु सरकार को भी भेजा गया है। एआईएडीएमके के प्राथमिक सदस्य पीए स्टालिन ने यह याचिका दाखिल की है। उन्होंने इस याचिका में कलकत्ता हाई कोर्ट के 1999 के निर्देश का हवाला दिया है। इस आदेश में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़े रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज का आयोग बनाने के मांग की गई थी।
तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता की मृत्यु से जुड़ी परिस्थितियों पर लोगों के संदेह को साझा करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने गुरुवार को संकेत दिया कि वह शव को समाधि से निकालने का आदेश दे सकते हैं। ऐसे में लोगों को संदेह है कि अगर जयललिता का शव बाहर लाया गया और उसकी जांच हुई तो बहुत मुमकिन है कि उनकी सबसे करीबी मानी जाने वाली शशिकला जेल की सलाखों के पीछे पहुंच जाएं।
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