शिरोमणि अकाली दल की गठबंधन सरकार में जिस तरह अव्यवस्था हावी थी, उसके कारण अकाली दल लोगों के लिए विकल्प नहीं था। BJP तो प्रदेश के बड़े हिस्से से लगातार गायब ही रही। यहां उनकी मौजूदगी बहुत हद तक दिखती ही नहीं थी। ऐसे में जब AAP सिख चरपंथियों की ओर झुकता दिखा, तो पंजाबी हिंदू मतदाता उससे असहज होने लगे। AAP ने सिखों को रिझाने की कोशिश में जिस आक्रामकता के साथ सिख कार्ड खेला, उससे भी पंजाबी हिंदू खुश नहीं थे। शायद यही वजह रही कि उन्हें AAP के मुकाबले कांग्रेस के साथ जाना ज्यादा बेहतर विकल्प लगा।
यह भी चर्चा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा समर्थित कुछ संगठनों ने AAP को सत्ता से दूर रखने के लिए अपने कैडर्स को कांग्रेस के साथ जाने का निर्देश दिया। अकाली-BJP गठबंधन के वापस सत्ता में लौटने की कोई संभावना नहीं थी, ऐसे में आक्रामक AAP की जगह बदहाल कांग्रेस के साथ जाना उन्हें ज्यादा मुनासिब लगा। 2011 की जनगणना के मुताबिक, पंजाब की कुल 2.8 करोड़ आबादी में हिंदुओं का हिस्सा करीब 38 फीसद है। BJP ने पंजाब में केवल 23 सीटों पर ही चुनाव लड़ा, बाकी सीटें अकालियों के हिस्से में थीं।