सुशासन का ही हिस्सा है पिछड़े वर्गों का सशक्तिकरण: CJI

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फाइल फोटो।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी. एस. ठाकुर ने कहा है कि पिछड़े, कमजोर और अशिक्षित लोगों को न केवल न्याय के लिए आवश्यक विधिक सहायता दी जाए बल्कि उन्हें अधिकारों के प्रति जागरूक कर उन्हें उनके अधिकार भी दिलाया जाए। उन्होंने कहा कि पिछड़े, कमजोर और गरीब लोगों को उनका अधिकार दिलाना सुशासन का ही हिस्सा है।

विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा पैरा लीगल वालिंटियर और पैनल अधिवक्ता भी नियुक्त किए जा रहे है, जिस तरह छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों में स्थानीय लोगों की भर्ती की जा रही है उसी तरह पैरा लीगल वालिंटियर और पैनल अधिवक्ता आदिवासी वर्ग से ही हो जिससे वह बेहतर तरीके से लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कर सके।

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ठाकुर ने रायपुर के भारतीय प्रबंध संस्थान (आई.आई.एम.) के प्रेक्षागृह में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बिलासपुर द्वारा आदिवासियों के अधिकारों का संरक्षण और प्रवर्तन विषय पर आयोजित देश की पहली कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) का मुख्य उद्देश्य है कि न्याय के लिए अमीर-गरीब का भेद नहीं होना चाहिए।

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चीफ जस्टिस ने कहा कि पिछड़े, कमजोर और अशिक्षित लोगों को न केवल न्याय के लिए आवश्यक विधिक सहायता दी जाए, बल्कि उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कर उन्हें उनके अधिकार भी दिलाया जाए।

उन्होंने कहा कि इसके लिए नालसा ने 2015 में सात नियम भी बनाए है, जिसमें असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों, बच्चों, मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों, नशा पीड़ितों, तस्करी एवं वाणिज्यिक यौन शोषण पीड़ितों को विधिक सेवाएं मुहैया कराना तथा आदिवासियों के अधिकारों का संरक्षण एवं प्रवर्तन को शामिल किया गया है।

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ठाकुर ने कहा कि देश में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक विभिन्न क्षेत्रों में आदिवासी निवासरत है। छत्तीसगढ़ की करीब 33 प्रतिशत आबादी जनजाति वर्ग की है। जनजातियों के संरक्षण व संवर्धन के लिए संविधान सहित विभिन्न कानून तथा केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा अनेक योजनाएं संचालित की जा रही है। इस कार्यशाला का उद्देश्य है कि इन कानूनों और योजनाओं का लाभ जनजाति लोगों को मिले तथा जहां कमी है उसे दूर किया जाए।