सच्चे गांधीवादी और बापू के एक भक्त अब्दुल हामिद कुरैशी चाहते थे कि उन्हें दफनाया न जाए बल्कि उनका दाह-संस्कार किया जाए, और ऐसा ही किया गया। कुरैशी उस साबरमती आश्रम के अध्यक्ष थे, जहां अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए बापू विचार किया करते थे। इसके अलावा कुरैशी एक प्रसिद्ध वकील भी थे।
कुरैशी ने शनिवार सुबह नवरंगपुरा स्थित स्वास्तिक सोसायटी में अपने नाश्ते की टेबल पर आंखरी सांसें लीं। जब कुरैशी को अंतिम संस्कार के लिए मुक्ति धाम श्मशान घाट ले जाया गया तो उनका पूरा परिवार वहां पहुंचा। दुख में डूबे परिवार के साथ वहां देश की न्याय व्यवस्था से जुड़े कई वरिष्ठ भी नजर आए। कुरैशी इमाम साहब अब्दुल कादिर बावाजिर के पोते थे, जो दक्षिण अफ्रीका में बापू के निकट मित्र थे। बापू इमाम बावाजिर को ‘सहोदर’ कहा करते थे, जिसका अर्थ होता है एक ही मां से पैदा हुआ भाई।
































































