कुरैशी के भाई वाहिद कुरैशी के दामाद भारत नाइक ने बताया, ‘कुरैशी साहब अपना दाह-संस्कार इसलिए चाहते थे क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि उन्हें दफनाकर जमीन का टुकड़ा बर्बाद किया जाए।’ भारत नाइक ने बताया कि दरअसल परिवार के अन्य सदस्यों के सामने ऐसे फैसले का उन्होंने मुझे गवाह बनाया।’ वह पिछले 4 वर्षों से अपने बेटे जस्टिस अकिल कुरैशी और नाइक को बार-बार याद दिलाते रहे कि उनका दाह-संस्कार ही किया जाए, उन्हें दफनाया न जाए; अगर कोई इसपर सवाल उठाता है तो ऐसा कहा जाए कि यही उनकी अंतिम इच्छा थी। कुरैशी का दाह-संस्कार शनिवार को शाम 7 बजे के बाद किया गया।
कुरैशी का जन्म साबरमती आश्रम ही हुआ था जहां इमाम बावाजिर बापू के साथ 1915 में आकर बसे थे। 1927 में जन्मे कुरैशी बापू की गोद में खेलकर बड़े हुए थे। कुरैशी उन छोटे बच्चों में से थे जो बापू के लंच से टमाटर के स्लाइस खाया करते थे। बापू ने कुरैशी को कई खत भी लिखे थे, जिन्हें बाद में नैशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया के सुपुर्द कर दिया गया था।































































