अस्पताल ने परिजनों को 22 हजार रुपये का बिल थमा दिया। परिजनों ने रिश्तेदारों और जानकारों को फोन कर जैसे-तैसे पैसे एकत्र किए, प्रबंधन ने पुराने नोट लेने से इनकार कर दिया। जब तीन घंटे तक अस्पताल ने शव को कब्जे से नहीं छोड़ा तो परिजनों ने एक दूसरे निजी अस्पताल के डॉक्टर का फोन कराया तो चेक लेने पर सहमति बनी।
रात को ही प्रदीप के परिजन 25 किमी दूर गांव गए और वहां पर रखी चेकबुक से मंगलवार की तारीख भरके चेक अस्पताल को दिया। रात करीब साढ़े दस बजे अस्पताल ने चेक लेने के बाद ही डेड बॉडी दी। प्रदीप के पिता हुसन सिंह का कहना है कि शव लेने के लिए वे तीन घंटे तक गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा।
पिता हुसन सिंह तीन घंटे तक अस्पताल के बाहर गिड़गिड़ाता रहा। वह कहता रहा साहब जी हमारे पास पैसे हैं, लेकिन वे बैंक में हैं। उन्हें हम अब नहीं निकाल सकते। दो चार दिन में किसी से लेकर पैसे दे देंगे, लेकिन अस्पताल ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। हुसन ने कहा कि वह अनपढ़ है। कार्ड और एटीएम के बारे में जानकारी नहीं है। बेटे का शव तो दे दो। प्रदीप प्लंबर का काम करता था। उसके पीछे उसकी दो बेटियां और एक बेटा है।
अमृतधारा अस्पताल के संचालक डा. राजीव गुप्ता ने बताया कि 1000 और 500 रुपये के पुराने नोट लेने के लिए हमारे पास कोई आदेश नहीं हैं। वैसे हम किसी का चेक नहीं लेते, लेकिन मृतक के परिजनों ने किसी जानकार डॉक्टर का फोन कराया था, इसलिए चेक लिया गया।