मध्यप्रदेश में उस वक्त इंसानियत शर्मसार हो गई, जब एक पति ने कूड़ा इकट्ठा कर अपनी बीवी का अंतिम संस्कार किया। जी हां इस गरीब पति की दलील है कि उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो अपनी बीवी के अंतिम संस्कार के लिए सामान खरीद सके। ये वाकया इंदौर से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर रतनागढ़ गांव का है। जहां गरीब आदिवासियों को जिंदगी गुजर बसर करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
रतनगढ़ गांव में एक आदिवासी को अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार कागज, टायर, प्लास्टिक बैग और झाड़ियों से करना पड़ा क्योंकि उसके पास लकड़ी खरीदने के पैसे नहीं थे। अपनी पत्नी की मौत से दुखी और पंचायत के इस बेरहम रुख के कारण उसे पत्नी की चिता जलाने के लिए तीन घंटे तक कचरा इकट्ठा करना पड़ा। प्लास्टिक बैग उठाते देख कुछ लोगों ने पत्नी को पानी में बहाने का भी सुझाव दिया।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक यह मामला शुक्रवार का है। पति जगदीश ने बताया कि मेरी पत्नी नोजीबाई की मौत शुक्रवार सुबह हुई थी। लकड़ी का इंतजाम करने के लिए हम रतनगढ़ पंचायत के पास गए, लेकिन मुखिया ने कहा कि वह कुछ नहीं कर सकते क्योंकि उनके पास ‘पारची’ के लिए पैसे नहीं है। पारची के लिए 2500 रुपए का खर्च होता है। इसके बाद मदद के लिए पीड़ित सभासद नत्थुलाल भिल के पास गए लेकिन वह बाहर थे। उन्होंने बताया कि किसी ने हमारी मदद नहीं की। नोजीबाई के देवर शंकर ने बताया कि हम मदद की अपील कर रहे थे और कई लोग हमे शव को डिस्पोज करने की सलाह दे रहे थे। वहीं से गुजर रहे आदमी ने कहा कि अगर पैसे नहीं हैं तो शव को नदी में फेंक दो। जगदीश का परिवार और कुछ दोस्त करीब तीन घंटे तक प्लास्टिक बैग्स, पेपर और लकड़ी इकट्ठा करते रहे।
जगदीश ने बताया कि कोई भी रास्ता नहीं निकलने के बाद परिवार ने फावड़े का इंतजाम करके शव को दफनाने का फैसला किया। हम कब्र खोदने जा रहे थे उसी दौरान एक सामाजिक कार्यकर्ता ने हमसे संपर्क किया। उन्होंने बखरी हुई लड़कियों और दूसरे सामान इकट्ठा करने में मदद की, जिसके बाद हम अंतिम संस्कार कर सके । 5 बजे के करीब हमने चिता को आग लगाई। कुछ देर बाद इस बात की खबर प्रशासन को लगी तो मदद के लिए कुछ लकड़ियां भेजी लेकिन तक तक अंतिम संस्कार खत्म होने वाला था।