वर्तमान में महाराष्ट्र में विवाहित महिलाओं में परिवार नियोजन विधियों में महिला नसबंदी की हिस्सेदारी 50.7 फीसदी है। जबकि पिरुष नसबंदी के लिए आंकड़े 0.4 फीसदी हैं। ये आंकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015-16 के हैं। जिला तथ्य पत्रकों से संकलित आंकड़ों में महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह का भी पता चलता है। सर्वेक्षण किए गए 35 जिलों में से 17 जिलों में एक भी पुरुष नसबंदी का मामला सामने नहीं आया है।
राज्य महिला एवं बाल विकास विभाग की मुख्य सचिव विनिता वेद सिंघल ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा, “मैं कई योजनाओं को देखती हूं, मैं किसी भी एक योजना के बारे में विशेष रुप से आप से बात नहीं कर सकती।”
अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने स्वीकार किया कि जनसंख्या नियंत्रण ‘माझी कन्या भाग्यश्री’ का अस्थिर उद्देश्य था। राज्य महिला एवं बाल विकास विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “इसलिए इस योजना को नसबंदी से जोड़ा गया है। ”
अधिकारी ने आगे कहा, “इसके अलावा, अगर हम इस शर्त को हटा देते हैं, तो योजना का खर्च बढ़ेगा। लोगों की मानसिकता किसी भी तरह से नहीं बदलेगी।”
कुछ क्षेत्रों के बाल विकास परियोजना कार्यालयों के उत्तरों से यह पता चला है कि योजना किस प्रकार उन लोगों तक भी पहुंचने में असफल रही है, जिन्होंने नसबंदी कराया है।
मुंबई में अंधेरी -1, मानखुर्द, विक्रोली-कांजुरमार्ग और गोवंडी बाल विकास परियोजना कार्यालय, रत्नागिरि शहर में रत्नागिरी बाल विकास परियोजना कार्यालय और अकोला – 2 अकोला शहर के बाल विकास परियोजना कार्यालय को 16 मार्च, 2017 तक दो-दो आवेदन प्राप्त हुए, लेकिन अभी तक उन पर काम करना बाकी है।
विक्रोली-कांजुरमार्ग और नए खार-सांताक्रूज़ और मानखुर्द क्षेत्र की बाल विकास परियोजना अधिकारी प्रेमा घाटगे कहती हैं, “हमने पात्र आवेदकों का चयन किया है, लेकिन इस बारे में कोई अन्य दिशानिर्देश नहीं हैं कि लाभ कैसे बदला जाए या किस एजेंसी या प्राधिकरण को इन्हें अग्रेषित किया जाए। इस योजना के तहत लाभ का भुगतान करने की प्रक्रिया अभी सुव्यवस्थित नहीं हुई है। ”
सतारा जिले को 23 मार्च, 2017 तक अधिकतम ( 58 ) आवेदन प्राप्त हुए और 27 को आगे की प्रक्रिया के लिए चुना गया। सांगली जिले को भी 31 मार्च, 2017 तक 50 आवेदन प्राप्त हुए, इनमें से सभी का चयन किया गया है।
योजना के लिए अन्य बाधाएं भी हैं । उनमें असमर्थित सरकारी प्रतिबद्धताएं भी हैं, जिस पर अभी तक काम नहीं किया गया है।
जीवन बीमा, स्वास्थ्य कर्मचारी पर अधूरे सरकारी वादे
7 मार्च, 2017 को एक सरकारी संकल्प के अनुसार अंतिम लाभ वितरित करने वाली एजेंसी के रूप में लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एलआईसी) के साथ एक समझौता हुआ है, लेकिन अभी तक इस पर हस्ताक्षर नहीं हुआ है।
योजना में कहा गया है कि एलआईसी के साथ लड़की के नाम पर आम आदमी बीमा योजना के तहत हर साल 100 रुपए का भुगतान करते हुए सरकार 21,200 रुपए जमा करेगी। और इसे लड़की के माता-पिता के लिए भी शुरू किया जाएगा।
परिवार अपनी बेटी के 18 साल होने पर 100,000 रुपए के अंतिम भुगतान का दावा कर सकते हैं, बशर्ते वह अविवाहित हो और इनमें से 10,000 रुपए उच्च शिक्षा या स्व-रोजगार के लिए उपयोग किया जाए।
राज्य ने अपने 88,272 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को भी भरोसे में नहीं लिया है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को इस योजना में उनके अधिकार क्षेत्र में आवेदन करने के लिए माता-पिता के सर्वेक्षण काम सौंपा गया है।