भारत के दूसरे हिस्से की तरह बेंगलुरू की आपराधिक न्याय व्यवस्था भी विलंब से चल रही है। ( विस्तार यहां, यहां और यहां पढ़ सकते हैं। बेंगलुरु सिटी पुलिस आयुक्त के आंकड़ों के मुताबिक दर्ज किए गए 4,241 छेड़छाड़ के मामले में से 2,248 (53 फीसदी) मुकदमे लंबित हैं।
ट्रायल किए गए मामलों में 523 ( 12 फीसदी ) निर्दोष साबित हुए हैं, जबकि 16 यानी 0.37 फीसदी को सजा मिली है। जबकि पुलिस जांच के बाद 97 फीसदी मामलों को “सही” मानते हैं। एक दशक पहले, “सच्चे” मामलों का आंकड़ा 84 फीसदी था, जो महिलाओं की शिकायतों से निपटने में अधिक खुले दिमाग के साथ जांच के लिए पुलिस की ओर से बेहतर प्रयास का संकेत देते हैं।
वकील और कार्यकर्ता मानते हैं कि सतही जांच के कारण अधिक लोग निर्दोष माने जाते हैं। एक प्रसिद्ध वकील और एक प्रसिद्ध महिला अधिकार कार्यकर्ता, प्रमिला नेसार्गा कहती हैं, “महिलाओं के खिलाफ अधिकतर मामलों में, विशेष रूप से छेड़छाड़ के मामले में , आरोपी को बरी कर दिया जाता है या फिर मामलों को लंबित रखा जाता है। इन सभी का मुख्य कारण पुलिस द्वारा उचित साक्ष्य प्राप्त करने की अनिच्छा है।” वह कहती हैं कि सरकार को प्रशिक्षित अधिकारियों की नियुक्ति करने की जरूरत है।
बेंगलुरु में छेड़छाड़ की घटनाएं, 2006-16
































































