इस सीट के ‘भाग्यशाली’ होने की कहानी 1969 से शुरू होती है, जब कांग्रेस के श्यो कुमार ने यहां से जीत हासिल की और पार्टी ने प्रदेश में सरकार बनाई। 1974 में भी कुमार यहां से जीते और कांग्रेस की सत्ता बरकरार रही। 1977 में जब पूरे देश में जनता पार्टी की लहर थी, जयसिंहपुर से भी जनता पार्टी के प्रत्याशी मकबूल हुसैन खान विजयी हुए और कांग्रेस प्रदेश की सत्ता से बेदखल हो गई।
1980 में यह सीट फिर कांग्रेस के पास चली गई। पार्टी के उम्मीदवार देवेंद्र पांडे ने यह सीट जनता पार्टी से छीनी और कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो गई। 1985 में भी यही कहानी दोहराई गई, कांग्रेस का ही विधायक और कांग्रेस की ही सरकार। जयसिंहपुर सीट से 1989 में जनता दल का उम्मीदवार चुनाव जीता और प्रदेश में पार्टी की सरकार बनी।
1991 में पहली बार यह सीट बीजेपी के खाते में आई और पार्टी पहली बार यूपी की सत्ता पर काबिज हुई। 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद बीजेपी की सरकार गिर गई और अगले साल हुए उपचुनाव में जयसिंहपुर के लोगों ने समाजवादी पार्टी से अपना विधायक चुना। समाजवादी पार्टी ने बीएसपी के साथ गठबंधन कर यूपी पर राज किया। इसके बाद 1996 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी के प्रत्याशी राम रतन यादव ने यह सीट जीती, पर प्रदेश में किसी को स्पष्ट जनादेश नहीं मिला। छह महीने बाद बीएसपी और बीजेपी ने अपने पहले गठबंधन के तहत यूपी में सरकार बनाई। 2002 के चुनाव में भी यह सीट बीएसपी के ही पास रही और फिर से बीएसपी-बीजेपी की गठबंधन सरकार ने सत्ता अपने हाथों में ली।