
पति के कहने पर पत्नी द्वारा चाय-नाश्ता बनाकर नही देने के याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है। सुनवाई के दौरान महिला जजों की बेंच ने कहा कि शारीरिक क्रूरता का प्रमाण तो दिया जा सकता है, लेकिन मानसिक क्रूरता को साबित करना मुश्किल है। पति-पत्नी में से जब किसी एक का व्यवहार दूसरे के लिए परेशानी बनने लगे। किसी एक के व्यवहार से जब दूसरा असहज होने लगे, अपमानित होने लगे, दुखी रहने लगे तो यह क्रूरता का आधार है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गुरुवार को दिल्ली हाइकोर्ट के जस्टिस दीपा शर्मा जस्टिस हीमा कोहली की बेंच ने यह फैसला सुनाया। तीस हजारी कोर्ट में पति ने याचिका दायर कर तलाक की गुजारिश की थी। याचिका में पति ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी उसे चाय, नाश्ता और खाना बनाकर नहीं देती थी। इस वजह से उसे पत्नी से अलग होने की अनुमति दी जाए। इस मामले में निचली अदालत ने पति के पक्ष में फैसला सुनाया था।
महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी थी, जहां निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा गया। जस्टिस दीपा शर्मा जस्टिस हीमा कोहली की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि पति-पत्नी पिछले 10 साल से एक दूसरे से अलग रह रहे हैं और उनका साथ रहना अब मुमकिन नहीं है, इसलिए उनकी तलाक की अर्जी मंजूर की जा रही है। पति-पत्नी के बीच साल 2006 से ही अनबन थे।