उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र रावत ने बुधवार को राजधानी देहरादून में कैंट रोड वाले चर्चित बंगले में विधि-विधान के साथ गृह-प्रवेश किया। राजनीतिक गलियारों में इस बंगले को ‘मनहूस’ बताया जाता है।
करोड़ों की लागत से बने इस बंगले के बारे में साल 2007 से ही मिथक है कि जो भी मुख्यमंत्री इस बंगले में रहा, कार्यकाल पूरा नहीं कर सका।
क्यों मनहूस माना जाता है बंगला ?
मुख्यमंत्री रहते रमेश पोखरियाल निशंक (मई 2011 से सितंबर 2011), बीसी खंडूरी (सिंतबर 2011 से मार्च 2012) और विजय बहुगुणा (मार्च 2012 से जनवरी 2014) इस घर में रह चुके हैं। तीनों ही अपनी कुर्सी संभाल कर नहीं रख सके। यही वजह है कि पूर्व सीएम हरीश रावत ने इस बंगले में रहने की बजाय बीजापुर गेस्ट हाउस को ही अपना आवास बना लिया था।
गृहप्रवेश से पहले हुई बंगले की शुद्धी
हालांकि त्रिवेंद्र रावत ने इस मामले में किसी भी तरह की आशंका या डर दिखाने से इनकार कर दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तुरंत बाद ही साफ कर दिया था कि वह मनहूस कहे जाने वाले आधिकारिक बंगले में रहेंगे।
उन्होंने नवरात्रि के पहले दिन बंगले में शिफ्ट होने का फैसला लिया। इस दिन को नए कामों की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी पत्नी और दोनों बेटियों के साथ तकरीबन दो घंटे तक पूजा की और इसके बाद बंगले में शिफ्ट हो गए।
कई साल खाली रहा 16 करोड़ का बंगला
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के आधिकारिक बंगले को पारंपरिक पहाड़ी स्टाइल में डिजाइन किया गया है। यह साल 2010 में तकरीबन 16 करोड़ रुपये की लागत से बना था। बंगला 10 एकड़ जमीन में फैला हुआ है लेकि मनहूसियत की अफवाहों की वजह से यह कई सालों तक खाली रहा।
सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत भारी बहुमत के साथ उत्तराखंड के 9वें सीएम बने हैं। अब चर्चा में एक ही सवाल है कि क्या त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड के 9वें मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा कर पाएंगे?