17 साल का उत्तराखंड लेकिन 9वीं बार मुख्यमंत्री का चयन, पढ़िए नए CM के सामने पहाड़ों की चुनौतियां

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उत्तराखंड
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ये कहना शायद गलत नहीं होगा कि 17 साल में उत्तराखंड के 9वें मुख्यमंत्री का पदभार संभाल रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत का ताज कांटों से भरा है। इस दौरान रावत के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। इनमें से कई समस्याओं को खत्म कर पाना किसी सपने से कम नहीं है। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती पहाड़ों में पलायन और भ्रष्टाचार को रोकने की होगी। चलिए जानें सत्ता संभालने के साथ ही रावत के सामने होंगी कौन सी बड़ी चुनौतियां ?

पलायन पर कसनी होगी नकेल

साल 2000 में उत्तराखंड बनने के बाद से ही इस सूबे में पलायन को रोकना सबसे बड़ी चुनौती रही है। 17 साल में सरकारें बदली, साल दर साल करते-करते 8 मुख्यमंत्री भी बदल गए लेकिन बावजूद इसके यहां के गांवो के हालात जस के तस रहे। आज भी नौकरियों की तलाश में पहाड़ों से लोगों के पलायन का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

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इस पहाड़ी राज्य में बेराजगारी और पलायन की समस्या का अंदाजा आप इसी बात से लग सकते हैं कि बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में रोजगार और पलायन जैसे अहम मुद्दों को काफी तरजीह दी थी। लेकिन क्या बीजेपी यहां के युवाओं को रोजगार दे पाएगी। ताकि वो काम की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख न करें। ये एक बड़ी चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है।

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भष्टाचार पर लगानी होगी लगाम

पलायन के साथ ही उत्तराखंड में दूसरा अहम मुद्दा भ्रष्टाचार का है जिसने इस राज्य की नींव को खोखला कर रखा है। इसीलिए भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की बात को काफी प्रमुखता से जगह दिया था। बीजेपी ने अपने मैनिफेस्टो में कहा गया था कि भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए सौ दिन में खंडूरी का लोकायुक्त एक्ट लागू होगा।

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मोदी लहर में उत्तराखंड की 70 सीटों में से 57 सीटों पर कब्जा जमाने वाली भारतीय जनता पार्टी के सामने अगली बड़ी सभी खाली पड़े पदों पर 6 महीने में भर्तियां की होगी क्योंकि ये वादा बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में भी किया था।

अगले स्लाइड में पढ़ें – बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में और क्या कुछ वादे किए थे।

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