लेकिन लालू की परेशानी है कि फ़िलहाल उन्हें अगले कुछ दिनों में ये निर्णय लेना होगा की दो धड़ों में बंटी समाजवादी पार्टी के किस धड़े के साथ वो रहते हैं. चाहे वो अखिलेश की समाजवादी पार्टी हो या शिवपाल की… लालू के लिए किसी के समर्थन में खड़े होना उतना आसान नहीं होगा। हालांकि उनकी कोशिश होगी, जहां उनके दामाद के कदम हों, उसके साथ रहना ही उनके लिए बेहतर होगा। फ़िलहाल लखनऊ से खबरों के अनुसार तेज प्रताप, अखिलेश यादव के साथ हैं, इसलिए मुलायम सिंह के पीछे खड़ा रहना मजबूरी है। लेकिन यहीं से लालू यादव की असल मुश्किल शुरू होती है।
दरअसल, लालू यादव को मालूम है कि भले अखिलेश यादव ने अपने पिता को मार्गदर्शक मंडल का रास्ता दिखा दिया हो, लेकिन अब तक के अखिलेश के मन और मिजाज से एक चीज साफ़ है कि वो सरकार और पार्टी चलाने के लिए किसी अपराधी, बाहुबली से किसी तरह का संबंध नहीं रखना चाहते.. भले ही वो किसी जाति या धर्म से आता हो। इस आधार पर लालू को मालूम हैं कि उनके पार्टी में एक नहीं दर्जन भर लोग ऐसे हैं, जिस पर अखिलेश जैसे नेता संबंधी होने के आधार पर नजरअंदाज नहीं करने वाले। लालू जानते हैं कि नीतीश कुमार के लिए मोदी विरोध के नाम पर उनके साथ राजनीतिक संबंध रखने की मजबूरी हो, लेकिन अखिलेश के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं है और तब लालू को देर-सवेर ये निर्णय लेना होगा कि वो अखिलेश के साथ भविष्य की राजनीति करते हैं या अपनी पार्टी के बाहुबलियों के सामने नतमस्तक रहते हैं। हालांकि जब भी उनकी पार्टी के किसी नेता भले ही वो शहाबुद्दीन हो या राजभल्लव यादव.. उनके खिलाफ नीतीश सरकार ने कार्रवाई की, तब लालू ने मौन रहकर सरकार बचाना ज्यादा बेहतर समझा।