इस्लामी आतंकवाद का उभार संपन्न माने जाने वाले पश्चिमी देशों के लिए एक गंभीर चिंता बनती जा रही है। आंतकी विचारों के प्रभाव में आ गए कुछ यूरोपीय नागरिक सीरिया या इराक जैसे देशों में कथित जिहाद में शामिल होने चल गए। इन लोगों को आतंकी बनने के लिए प्रेरित करने वाले कई बार उनके ही मुल्क की कुछ लोग थे। ऐसे ही लोगों में एक थे अमेरिका निवासी जेसे मॉर्टन जो कई अमेरिकियों को आतंकी संगठन अल-कायदा में शामिल करवा चुके थे लेकिन अब मॉर्टन बदल चुके हैं। फरवरी 2015 में जेल से रिहा होने के बाद वो आतंकवाद का सामना करने में अमेरिकी प्रशासन की मदद करते रहे हैं। हाल ही में उन्हें जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी ने अपने आतंकवाद अध्ययन केंद्र में रिसर्च फेलो के तौर पर चुना है।
अमेरिकी अखबार न्ययॉर्क टाइम्स के अनुसार मॉर्टन ने जिन लोगों को अपने ऑनलाइन पोस्ट और ट्यूटोरियल से आतंकी गतिविधियों के लिए प्रेरित किया उनमें पेंटागन में रिमोट-कंट्रोल प्लेन से विस्फोट कराने वाले और स्वीडेन में पैगंबर मोहम्मद का कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट की हत्या करने वाले शामिल थे। उनके द्वारा भर्ती कराए गए कई आतंकी अभी भी इस्लामिक स्टेट के लिए लड़ रहे हैं। मॉर्टन ने अखबार को बताया कि वो कई बार मस्जिदों के बाहर खड़े होकर अपने संभावित शिकार खोजा करते थे. मॉर्टन ने बताया, “हम शेरों की तलाश करते थे और उन्हें भेड़ों की तरह (मरने के लिए) छोड़ देते थे।”
37 वर्षीय मॉर्टन चार सालों तक आतंकियों के लिए काम करते रहे थे। अब वो आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा के वैचारिक प्रसार का मुकाबला करने के लिए बनाई गई अमेरिकी रणनीति का हिस्सा हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई के लिए गुप्तचर का काम कर चुके मॉर्टन को अमेरिका की जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के चरमपंथ का अध्ययन करने वाले कार्यक्रम में इस्लामी चरमपंथ पर शोध करेंगे।
ब्रिटेन में पूर्व आतंकियों को विभिन्न थिंक टैंक में शामिल किया जाता रहा है लेकिन मॉर्टन शायद पहले अमेरिकी पूर्व जिहादी हैं जिसे एक सार्वजनिक भूमिका सौंपी गई है। जेल से रिहा होने के बाद मॉर्टन को यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में शामिल करने से पहले उनके मामले से जुड़े सात खुफिया अधिकारियों से इस बाबत पूछताछ की गई। यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ साइबर एंड होमलैंड सिक्योरिटी के प्रमुख लॉरेंजो वाइडिनो ने बताया, “एक भी अधिकारी ने उन्हें शामिल करने के खिलाफ राय नहीं दी।”
कुछ दिनों पहले न्यूयॉर्क टाइम्स ने मॉर्टन से पूछा कि आखिर इस बात पर कैसे भरोसा किया जाए कि वो बदल गए हैं? इस पर मॉर्टन ने कहा था, “जितने भी लोग मेरी बातों के कारण आतंकवाद से जुड़े होंगे या विदेश गए होंगे, मुझे उम्मीद है कि उतने ही लोगों को मैं ऐसा करने से रोक सकता हूं। हो सकता हूं कि मैं उस नुकसान की भरपाई न कर सकूं जो मैंने पहुंचाया है लेकिन मैं कम से कम कोशिश तो कर सकता हूं।”
मॉर्टन का जन्म अमेरिका के पेनसिलवेनिया में हुआ था। उनकी मां उन्हें काफी मारती-पीटती थीं। 16 की उम्र में वो घर से भाग गए और ड्रग्स बेचने के धंधे से जुड़े गए। इस्लाम से उनका पहला परिचय 1999 में हुआ। वो और उनका एक साथी पुलिस से बच कर भाग रहे थे। वो दोनों बचने के लिए एक इमारत में छिप गए। पुलिस जब उनके पास आने लगी तो उनका साथी अरबी में कुछ बुदबुदाने लगा। पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पाई। बाद में मॉर्टन को पता चला कि उनका साथी कुरआन की आयत बुदबुदा रहा था। उस समय उनकी उम्र 21 साल थी। उन्हें लगा कि ये ऊपर वाले का इशारा है और वो मुसलमान बन गए।
मुस्लिम बनने के कुछ समय बाद ही उन्हें ड्रग्स बेचने के आरोप में जेल हो गई। वर्जीनिया के रिचमंड स्थित एक जेल में उनका मोरक्को के एक 40 वर्षीय मुस्लिम से परिचय हुआ। वो उसे अपना पहला इमाम बताते हैं। इमाम उन्हें इस्लाम के बारे में जानकारी देने लगा। उसने मॉर्टन का नया नाम यूनुस रखा। मार्टन के अनुसार उनका इमाम उन्हें बताता था कि ये ‘हमारे और उनके” बीच की लड़ाई है। उनका इमाम भविष्यवाणी करता था कि एक दिन अमेरिका बर्बाद हो जाएगा।
मार्टन ने 2006 में न्यूयॉर्क के मेट्रोपोलिटन कॉलेज से स्नातक की पढा़ई पूरी की। अगले साल उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल स्टडी में परास्नातक किया। पढ़ाई के दौरान ही खाली समय में आतंकी समूहों के संपर्क में आए। उनका जल्द ही जमैका के आतंकवादी अब्दुल्लाह अल-फैसल से परिचय हो गया। अल-फैसला ने ही 2005 में हुए लंदन बम धमाके को आतंकी हमले के लिए प्रेरित किया था। न्यूयॉर्क के ही एक अन्य नए धर्मांतरित मुस्लिम के साथ मिलकर उन्होंने और अल-फैसल ने आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली एक वेबसाइट शुरू की।
15 अप्रैल 2010 को मॉर्टन के एक 20 वर्षीय साथी ने एक वीडियो में गलती से अपने पते के बारे में सुराग छोड़ दिया। उस व्यक्ति को पुलिस ने उसी समय विदेश जाने की कोशिश करते हुए हवाईअड्डे पर पकड़ लिया। 27 अक्टूबर 2011 को पुलिस मॉर्टन तक पहुंच गई। उन्हें साढ़े 11 साल की जेल हुई। जेल में अमेरिकी अधिकारियों के बरताव से उन्हें अपने पिछले कामों पर पछतावा होने लगा। जेल में उन्होंने लाइब्रेरी में काफी वक्त बिताया। उनपर 1689 में लिखे जॉन लॉक के निबंध, “लेटर कंसर्निंग टॉलरेशन” का काफी असर हुआ। लॉक ने इस निबंध में तर्क दिया है कि आस्था कभी हिंसा से नहीं पनप सकती। आतंकवाद से मुकाबला करने में प्रशासन की मदद करने और उनमें आए बदलाव की वजह से उनकी सजा को कम करके चार साल कर दिया गया। वो कहते हैं कि चार सालों बाद 27 फरवरी 2015 को जब जेल से छूटा तो मैं एक बदला हुए इंसान था।