नोटबंदी का सबसे ज्यादा फायदा मोबाइल भुगतान की सुविधा देने वाली कंपनियों को हो रह है। पेटीएम की तो बल्ले-बल्ले हो गई है। लेकिन बढ़ते मुनाफे के साथ ही कंपनी में चीन के निवेश को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। अन्य आलोचकों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की आर्थिक शाखा भी पेटीएम के चीनी संबंध पर बारीक नजर रखे हुए है। आरएसएस से जुड़ा स्वेदशी जागरण मंच (एसजेएम) चीनी उत्पाद और निवेश के खिलाफ लंबे समय से आंदोल चला रहा है। स्वदेशी जागरण मंच ने कहा है कि वो पेटीएम और चीनी कंपनी अलीबाबा ग्रुप के बीच के संबंधों का “अध्ययन” कर रहा है।
स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने इकनॉमिक्स टाइम्स अखबार से कहा, “हमने पेटीएम में चीनी हिस्सेदारी के बारे में कई रिपोर्ट पढ़ी है। अब हम नकद-मुक्त अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रहे हैं तो हमें ये ध्यान रखना होगा कि भारतीयों का डाटा सुरक्षित रहे। किसी भी भारतीय कंपनी को किसी विदेशी कंपनी के साथ डाटा शेयर नहीं करना चाहिए। विदेशी निवेश को पूरी तरह पारदर्शी होनी चाहिए।” आठ नवंबर को जब पीएम मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की उसके बाद पेटीएम ने सभी प्रमुख अखबारों में पीएम मोदी की तस्वीर के साथ बड़े विज्ञापन छपवाए थे। जिसके बाद से इस कंपनी के चीनी स्वामित्व का मुद्दा चर्चा में है।
अखबार के अनुसार अलीबाबा के ग्लोबल मैनेजिंग डायरेक्टर के गुरु गौरप्पन को पिछले महीने पेटीएम के बोर्ड में एडिशनल डायरेक्टर के तौर पर शामिल किया गया था। माना जाता है कि अलीबाबा और उसकी सहयोगी कंपनी अलीपे की नोयडा स्थित पेटीएम में 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है और अलीबाबा ग्रुप पेटीएम के माध्यम से भारतीय बाजार में पैर जमाना चाहता है। महाजन ने बताया कि एसजेएम के विशेषज्ञ पेटीएम का विशेष अध्ययन कर रहे हैं और संगठन की दिल्ली में होने वाली अगली बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा होगी। महाजन के अनुसार अध्ययन के नतीजे आ जाने के बाद वो इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से संपर्क करेंगे।