नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तानी गोलाबारी की वजह से हजारों लोगों को घर छोड़ना पड़ रहा है। नियंत्रण रेखा से लगे हमीरपुर गांव के 87 वर्षीय सुरम चांद लगातार एक जगह से दूसरी जगह विस्थापित हो रहे हैं। भारत-पाक के बीच युद्ध और शत्रुता ने उन्हें कई बार बेघर किया है।
पाकिस्तानी सैनिकों की ताजा गोलाबारी ने इस वृद्ध व्यक्ति को एलओसी से लगे पल्लनवाला सेक्टर स्थित अपना घर बार फिर से छोड़ने और खौर के एक विद्यालय में शरण लेने को मजबूर किया जहां राज्य सरकार ने सीमावर्ती प्रवासियों के लिए एक शिविर लगाया है।
चांद ने बताया कि उनके लिए विस्थापन कोई नयी चीज नहीं है, क्योंकि दोनों देशों के बीच शत्रुता के चलते उन्हें और उनके परिवार को कई बार शिविर में रहना पड़ा है। चांद ने कहा कि जिस दिन से पाकिस्तान बना उस समय से सीमावर्ती बाशिंदों के लिए समस्याएं पैदा हो गई।
इसके पहले नियंत्रण रेखा नहीं थी और लोग एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए मुक्त थे। लेकिन 1947 के बाद हमारे लिए मुश्किलें बढ़ गई। एक ही रात में हम सब सीमावर्ती बाशिंदे बन गए और सीमा पर की शत्रुता के पीड़ित बन गए।
चार गांवों के सैकड़ों बाशिंदों के लिए इलाके के सरकारी स्कूल घर बन गए हैं, जिन्हें वहां ले जाया गया है। दरअसल, पाक के कब्जे वाले कश्मीर में सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है। चांद ने बताया कि पाकिस्तान के चलते वे कष्ट झेल रहे हैं। जब उनके बच्चे छोटे थे उन्हें दूसरी जगह जाना पड़ा और अब इस उम्र में उन्हें अपना घर बार अपने पोते पोतियों के साथ छोड़ना पड़ा।
कुछ साल पहले सीमा पार से दागे गए एक मोर्टार के गोले से लगी चोट के निशान को दिखाते हुए 70 साल के गीतम सिंह ने बताया कि सीमा पर रहने वाले उनके जैसे सैकड़ों लोग पाकिस्तान नाम के रोग के चलते इन मुश्किल हालात का सामना कर रहे हैं। वह 20 साल सेना में सेवा देकर सेवानिवृत हो चुके हैं। 200 परिवारों के साथ इस सीमा क्षेत्र में हमीरपुर सबसे बड़ा गांव है।