नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली के विसंत विहार में आज ही के दिन यानी 16 दिसंबर 2012 को देर रात चलती बस में 23 वर्षीय निर्भया(काल्पनिक नाम) के साथ हुई सामूहिक दुष्कर्म की घटना ने भारत सहित सारी दुनिया को झकझोर कर रख दिया था।
इस जघन्य अपराध के चार साल हो गए। इन चार सालों में बहुत कुछ बदला भी और नहीं भी। महिलाओं के खिलाफ अपराध पर लगाम लगाने के लिए कानून में बदलाव के कई अहम दावे किए गए। दिल्ली पुलिस महिला अपराधों को लेकर सख्त हुई, लेकिन जो कुछ नहीं बदला, वो है हमारा समाज…!
शायद ही किसी को उसका नाम मालूम हो। किसी अखबार ने उसे नाम दे दिया- निर्भया, और देश के करोड़ों लोगों की भावनाएं उसके साथ जुड़ गयीं और वह लोगों के गुस्से का आधार बन गई। लेकिन जनाक्रोश के बाद हुआ बदलाव बहुत दिनों तक नहीं दिखा। धीरे-धीरे दिल्ली फिर उसी पुरानी स्थिति में लौट आई। इन सबके बीच वो पीड़ित परिवार अब भी हर अपनी प्यारी सी बिटिया की याद में सिसक रहा है।
आज कहने को तो महिलाओं और पुरूषों को हमारा समाज समान अधिकार देता है। ऐसा माना जाता है कि अधिकारों को लेकर महिलाओं और पुरूषों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाता। लेकिन यह बात शायद समाज में उदाहरण देने तक तक ही सीमित है। महिलाएं चार साल पहले भी पीड़ित थीं और आज भी पीड़ित हैं। इंसानियत कल भी दम तोड़ रही थी, आज भी दम तोड़ रही है।
भारतीय महिलाएं चांद पर पहुंच गईं, लेकिन पुरूषों की मानसिकता आज भी यही है कि घर का काम, बर्तन साफ करना, खाना बनाना आदि तो महिलाओं के ही काम हैं, लेकिन उन्हें आज समझना होगा कि नारी भी एक इंसान है। इसके लिए अपनी सोच के दायरे को विशाल करना होगा।
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