बिहार के बच्चों पर मंडरा रहा है निमोनिया और डायरिया का खतरा, बड़ी बड़ी योजनाएं भी फेल

0
बिहार
Prev1 of 3
Use your ← → (arrow) keys to browse

बिहार में बच्चों पर डायरिया और निमोनिया का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर के मामले में बिहार छठे स्थान पर हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के ड्यूक एंड स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के शोधकर्ताओं द्वारा की गई रिसर्च के अनुसार बिहार में बच्चों को डायरिया और निमोनिया के खतरे से बचाने के लिए ‘बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ द्वारा चलाये जा रहे पांच वर्षीय कार्यक्रम का प्रदेश पर कुछ खास असर नहीं हुआ है। लेकिन गौर करने वाली बात यह भी है कि यह कार्यक्रम काफी चर्चाओं में है और इतना ही नहीं इस पांचवर्षीय प्रोग्राम को पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

इसे भी पढ़िए :  ट्रेन में महिला के साथ हुई 'गंदी हरकत', हेल्पलाइन पर कॉल की तो हंसने लगे अफसर

अंतराष्ट्रीय संस्था द्वारा चलाई जा रही 23 मिलियन यानि कि 153.3 करोड़ रूपये की यह योजना अभी तक अधूरी है बिहार के अबतक केवल 3 प्रतिशत डायरिया और निमोनिया से पीड़ित बच्चे ही वर्ल्ड हेल्थ पार्टनर्स (डब्लूएचपी) स्काई प्रोग्राम के तहत प्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवरों के पास गए हैं। इस कार्यक्रम का उद्देश्य बिहार में दस्त और निमोनिया का बेहतर और प्रभावी ढंग से इलाज के लिए फ्रेंचाइजी नेटवर्क बनाना है। कार्यक्रम के तहत हज़ारों अनौपचारिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दी जाती है और टेलीमेडिसिन द्वारा उन्हें मरीजो के साथ जोड़ा जाता है। टेलीमेडिसिन एक ऐसी तकनीक है, जिसके जरिए दूरदराज के रोगियों का इलाज किया जाता है और इसके लिए बातचीत, वीडियो फुटेज और जांच के दौरान प्राप्त डेटा का उपयोग किया जाता है।

इसे भी पढ़िए :  खूनी पटरियों ने ली एक साथ आठ लोगों की बलि...दिल थामकर पढ़ें पूरी खबर

आगे की खबर पढ़ने के लिए अगली स्लाइड पर जायें

Prev1 of 3
Use your ← → (arrow) keys to browse