कुछ मंदिर यह रास्ता इसलिए भी अपना रहे हैं क्योंकि उनके पास जितना भी कैश है वह सब दान में मिला हुआ नहीं है। इनमें से ज्यादातर पैसा उन अमीर जैन व्यवसायियों ने दिया है जो पवित्र मौकों पर अलग-अलग पूजा और रीति रिवाज को स्पॉन्सर करते हैं। दक्षिण मुंबई के एक मंदिर के ट्रस्ट के सूत्र ने कहा, ‘500-1000 के नोट बंद होने के बाद ज्यादातर मंदिरों के लिए अपनी नकद राशि का बंदोबस्त करना मुश्किल हो रहा है। यही वजह है कि मंदिर अब श्रद्धालुओं से मदद की उम्मीद कर रहे हैं।’
लालबाग के एक मंदिर के ट्रस्टी का कहना है कि अपनी तुरंत की जरूरतों को पूरा करने के लिए लोग उनसे पैसा ले सकते हैं जिसके लिए उन्हें कोई ब्याज भी देने की ज़रूरत नहीं है। बस 4-5 महीने बाद ली गई रकम को वर्तमान में चलने वाली करेंसी में वापस कर दें। लेकिन इससे तो आम लोगों की दिक्कत और बढ़ जाएगी। अभी वो अपने नोट बदलवाने के लिए लाइन में खड़े फिर तो मंदिर से मिली रकम को बदलवाने के लिए भी लाइन में लगना पड़ेगा।