एक बंदर की कीमत 500 रूपये ज़िंदा या मुर्दा

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पंचायत स्तर पर गठित ये टीमें वन विभाग के अधिकारियों के सहयोग से बंदरों को मारने के अलावा उन्हें भगाने और क्षेत्र विशेष तक सीमित रखने के लिए काम करेगी। बैठक के दौरान यह भी निर्णय हुआ कि बंदरों को वर्मिन घोषित कराने के साथ ही उनके एक्सपोर्ट पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए नए सिरे से केंद्र सरकार से संपर्क किया जाएगा।

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ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि हिमाचल सरकार के पास बंदरों की बली चढ़ाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है जिससे बंदरों को आबादी वाले क्षेत्रों से दूर रखा जा सके। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि जानवरों के हक की लड़ाई लड़ने वाली पेटा और उस जैसी अन्य संस्थाएं हिमाचल सरकार के इस फैसले पर क्या रुख अपनाती हैं।

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अगले पेज पर पढ़िये इससे पहले आगरा में बंदरों की आबादी रोकने के लिए कैसे उनका परिवार नियोजन किया गया था।

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