वर्ष 2000 में नया राज्य बना उत्तराखंड। यहां भी पिछले एक दशक में 3.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। एक दशक पहले राज्य में 60 फीसदी टीकाकरण दर्ज किया गया था। हालांकि, राज्य सकल घरेलू उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय, गरीबी में कमी, और साक्षरता में उतराखंड अपने मूल राज्य से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने फरवरी 2017 में विस्तार से बताया है।
भारत के उत्तर-पूर्व राज्यों में टीकाकरण कवरेज

दिसंबर 2014 में मिशन इंद्रधनुश का शुभारंभ किया गया है। यह कार्यक्रम वर्तमान में दूसरे चरण में है। यह कार्यक्रम प्रति वर्ष 5 फीसदी तक प्रतिरक्षण बढ़ाने के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था। लक्ष्य है कि 2020 तक 90 फीसदी बच्चों को प्रतिरक्षित किया जाए।
मिशन के पहले चरण के दौरान सरकार ने, देश में सभी असंबद्ध या आंशिक रूप से टीका लगाए गए बच्चों के लगभग 50 फीसदी पीएच के 201 “हाई फोकस” जिलों की पहचान की है। यह जानकारी वर्ष 2015 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से जारी प्रेस विज्ञप्ति में है।
इनमें से 82 जिले बीमारू राज्यों में स्थित हैं। बिहार में 14, मध्य प्रदेश में 15, राजस्थान में 9 और उत्तर प्रदेश में 44 जिले हैं, जहां 25 फीसदी निर्बाध या आंशिक रूप से टीका लगाए गए बच्चे रहते हैं।
टीकाकरण प्रयासों में महत्वपूर्ण प्रगति का श्रेय इन राज्यों पर बढ़ते फोकस को दिया जा सकता है। लेकिन गरीब राज्यों पर फोकस से समृद्ध राज्य टीकाकरण में पिछड़ते गए।
पूरे भारत में आंशिक या कोई प्रतिरक्षण न होने के पीछे कई कारण हैं, लेकिन इनमें से सबसे आम कारण कुछ ऐसे हैं। आवश्यकता के संबंध में आश्वस्त नहीं होना (28 फीसदी) और जागरूकता की कमी (26 फीसदी), जैसा कि मिशन इंद्रधनुष के इस फैक्टशीट से पता चलता है।
यह गुजरात के निष्कर्षों में भी परिलक्षित होता है, जहां टीके की आवश्यकता महसूस न होना (22.3 फीसदी) और टीके के संबंध में कम जागरुकता ( 15.5 फीसदी ) कम प्रतिरक्षण होने के दो महत्वपूर्ण कारण हैं। करीब 10.2 फीसदी इसे किसी की गलत सलाह मानते हैं, जबकि 8.1 फीसदी ने महसूस किया कि “समय सुविधाजनक नहीं था”।
अन्य प्राथमिक कारणों के अलावा महाराष्ट्र में ‘समय सुविधाजनक नहीं’ (15.2 फीसदी) और ‘टीका देने की जगह के संबंध में जागरुकता की कमी’ कम टीकाकरण कवरेज के बड़े कारण हैं। उत्तर-पूर्वी राज्यों में जहां टीकाकरण कवरेज विशेष रूप से कम है, औसतन 44.9 फीसदी लोगों ने बच्चों का टीकाकरण न कराने की आवश्यकता महसूस की है।
रिपोर्ट कहती है, “एकमुश्त टीके लगाने के लिए लघु अभियान अलग बात है, लेकिन स्वास्थ्य में निरंतर निवेश से पूर्ण प्रतिरक्षण में दीर्घकालिक सुधार प्राप्त करना जरूरी है। ”