उत्तर प्रदेश के कैराना में एक नया सच सामने आया है कि विशेष धर्म द्वारा प्रताड़ित करने पर हिंदुओं के पलायन के आरोप पर (NHRC) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। मगर यहां के निवासियों से बात करने पर कुछ अलग तस्वीर सामने आती है। जुलाई-अगस्त में हिंदुओं के पलायन के दावों की जांच करने के लिए मानवाधिकार आयोग की टीम कैराना आई थी।
(NHRC) की रिपोर्ट के अनुसार, कैराना और मुजफ्फरनगर का दौरा करने वाली सदस्यों ने कहा कि कैराना का पलायन सांप्रदायिक प्रकृति का नहीं है।उन्होंने कहा कि हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों ने अन्य स्थानों में बेहतर कारोबारी मौके पाने के लिए कैराना छोड़ा। लोगों ने किसी खास समुदाय के डर से यह पलायन नहीं किया। मानवाधिकार आयोग की जांच टीम का कहना था कि ‘‘बढ़ते अपराध’’ और ‘बिगड़ती’ कानून एवं व्यवस्था के चलते कैराना से कई परिवारों ने पलायन किया। आयोग ने दावा किया है मुस्लिम युवकों ने कैराना में हिंदू लड़कियों को छेड़ा, जिससे वे घर के बाहर निकलने में भी डरने लगे। दंगों से प्रभावित करीब 29,300 लोग मुजफ्फरनगर और शामली में फैली 65 ‘कालोनियों’ में रह रहे हैं। इनमें से 90 फीसदी नजदीकी कस्बे से 15-20 किलोमीटर दूर बसे हैं।
जहां (NHRC)रिपोर्ट कहती है कि हिंदू लड़कियों को छेड़ा गया था। द इंडियन एक्सप्रेस ने कैराना के ऐसे करीब 20 कैंपों का दौरा किया। ज्यादातर मुस्लिम बेहद गरीब हैं, वे घर-बार छोड़कर यहां किसी तरह बसर कर रहे हैं। मूल रूप से मुजफ्फरनगर के फुगना गांव के निवासी, हसनपुर कॉलोनी के राहत कैंप में रह रहे 60 साल के सुलेमान आयोग की रिपोर्ट पर हैरानी जताते हैं, वह कहत हैं कि वे बहुत कम ही कैराना कस्बे में जाते हैं। उन्होंने कहा कि मेरे तीन बच्चे दिनभर पत्थर तोड़ते हैं, तब कहीं जाकर हमें एक वक्त की रोटी नसीब होती है। कैंप में कोई परिवार इस ईद पर कुर्बानी नहीं दे सका, न ही हमारे पास सेवइयों के लिए पैसा है। हम अपनी समस्या में इतने परेशान हैं, लड़कियां क्या छेडेंगे, वो भी 20 किलोमीटर जाकर कैराना में जितना पैसा वहां जाने में खर्च होगा, उतने में हम 10 रोटी बना सकते हैं।
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